बुधवार, 30 दिसंबर 2009

महंगाई की मार खाते गरीब पर सियासत का डंक

बाराबंकी। महंगाई की मार गरीब को खाए जा रही है। हाल यह है कि अगर वह रोटी की तरफ दौड़ता है तो, दाल के पैसे नहीं। किसी तरह से मेहनत मजदूरी कर यह दोनों जूता लेता है तो दवा के पैसे नहीं, ठण्ड में गर्म कपड़ों के पैसे नहीं ओढने को गर्म कम्बल रजाई नहीं। गर्ज कि भारत में गरीब पिस रहा है और अमीर व्यक्तियों की संख्या व इनके ऐशो आराम के संसाधनों में दिन प्रति दिन इजाफा हो रहा है उदारीकरण शायद अमीरों को और अमीर बनाने के लिए साम्राज्यवादियों का एक प्रबल हथियार साबित हो रहा है। वही गरीबों के लिए घातक ।

विगत दो वर्षों से महंगाई का ग्राफ देश में तेजी से बढ़ रहा है परन्तु मुद्रा स्फूर्ति की दर वहीँ की वहीँ या कम दर्शायी जा रही है। इससे अधिक हसीन धोखा जनता के साथ और क्या हो सकता है ? देश में न गेहूं का उत्पादन कम हुआ न धान का। सब्जियों के उत्पादन में तो इजाफा ही हुआ है परन्तु गेंहू, चावल और सब्जियों सभी के दाम आसमान छू रहे हैं । बावजूद इसके दाम बढ़ने का लाभ सीधे किसानो तक नहीं पहुँच रहा। बिचौलिए या वायदा कारोबारी करोडपति हो रहे हैं और हमारा मीडिया बड़ी बेशर्मी के साथ देश में बढ़ते करोड़पतियों की संख्या का बखान करता फिर रहा है।
गन्ना किसानो के साथ ऐसा बर्ताव किया गया कि उन्होंने गन्ना बोना ही कम कर दिया। नतीजे में प्रदेश की शक्कर विदेशों से मंगाने पर सरकार अधिक दिलचस्पी दिखा रही है किसानो से गन्ना लेने के स्थान पर विदेशों की कच्ची शक्कर शुगर मिलों को सप्लाई करने की अनुमति आयात कर्ताओं को सरकार द्वारा दी जा चुकी है। कुछ प्रान्तों में किसानो के उग्र प्रदर्शन के बाद सरकार के इस प्रयास में शिथिलता आई। आयातित कच्ची चीनी बंदरगाहों पर रखी हुई है ।
इन हालात में केंद्र व राज्य सरकारें जहाँ-जहाँ गैर कांग्रेसी सरकारें हैं के बीच वाक् युद्ध चल रहा है। गरीब से हमदर्दी किसी को नहीं। महंगाई पर राजनीति हो रही है। गैर कांग्रेसी सरकारें जमा खोरों व मुनाफाखोरों के विरुद्ध कोई कार्यवाई नहीं कर रही है। वह नहीं चाहती है कि केंद्र की सरकार महंगाई की दलदल से उबर सके । राशन प्रणाली की व्यवस्था कम से कम उत्तर प्रदेश में तो पूर्णतया ध्वस्त हो चुकी है। बी.पी.एल अन्त्योदय जैसे कार्ड धारकों को भी निर्धारित राशन प्रतिमाह नहीं मिल पाता है । ए.पी.एल कार्ड धारक तो बहुत पहले ही अपनी राशन दूकान भूल चुके हैं । उनके लिए कार्ड का उपयोग केवल उनंके निवास स्थान की पुष्टि के लिए ही शेष रह गया है अधिकांश राशन कोटेदार अपना राशन उठाने के लिए धन गल्ला माफियाओं से लगवाते हैं। अपना एलाटमेंट जिला पूर्ति कार्यालय से प्राप्त कर वह गल्ला माफियाओं के हवाले कर देते हैं जो बैंक में पैसा जमा कर राशन मार्केटिंग इंस्पेक्टरों के साथ साठ-गांठ कर सरकारी गल्ला गोदामों से उठा कर आटा मिलों के हवाले कर देते हैं। गल्ला माफिया को जिला पूर्ति कार्यालय, मार्केटिंग इंस्पेक्टरों व पुलिस सभी की मुट्ठी गर्म करनी होती है।
राशन प्रणाली में फैले इस भ्रष्टाचार को रोक कर गरीब के मुंह में निवाला पहुँचाने की फ़िक्र कितनी किसको है इस का अनुमान यूँ लगाया जा सकता है की उत्तर प्रदेश की राजधानी से सटे जिला बाराबंकी में जिलाधिकारी विकास गोठलवाल ने कंगाल से करोडपति बन चुके एक गल्ला माफिया पर हाथ डाला। नगर के एक छोर पर स्थित एक फ्लोर मिल पर सरकारी गेंहू उतरते रंगे हाथों पकड़ा गया। ट्रक ड्राईवर व मिल के कर्मचारियों ने बयान दिया कि गेंहू गल्ला माफिया का है। उसके विरुद्ध मुकदमा भी दर्ज किया गया परन्तु उच्च न्यायलय से वह अपनी गिरफ्तारी पर स्थगन आदेश ले आया उसके बचाव में सबसे पहले सत्ता दल के लोग सामने आये । प्रदेश के मंत्री संग्राम सिंह वर्मा के प्रतिनिधि सुरेन्द्र वर्मा ने जिलाधिकारी को फ़ोन कर मामले को ठन्डे बस्ते में डालने को कहा ईमानदार जिलाधिकारी ने एक न सुनी और कारवाई पूरी कर दी गयी। गेंद अब पुलिस के पाले में आया है। विवेचना हो रही है पुलिस ने गल्ला माफिया के फ़ोन की जब कॉल डिटेल निकलवाई तो पता चला की उसके फ़ोन पर जिलापूर्ति कार्यालय से लेकर मार्केटिंग अधिकारी कार्यालय व कोटेदारों से फ़ोन पर वार्तालाप की कालें मौजूद हैं। जिला प्रशासन की संलिप्तता सामने आने के बाद जिलाधिकारी भी शिथिल होते नजर आने लगे। बताते हैं कि उनके स्थानांतरण के लिए पूरा जोर सत्ता दल के मकामी नेता लगाये हुए हैं क्योंकि कई और मामलों में वह अपनी ईमानदार छवि के चलते कबाब में हड्डी बने हुए हैं। मामला टाय-टाय फिश होता नजर आ रहा है ।
गल्ला माफिया के विरुद्ध एक ईमानदार जिलाधिकारी के इस प्रयास को न तो नैतिक समर्थन शासन से मिला और न ही विपक्षी पार्टियों ने जिलाधिकारी की पीठ थपथपाई। हर मामले पर अपना बयान देने वाले पूर्व आई.ए.एस अधिकारी और वर्तमान में जिले के सांसद, वह भी कांग्रेस पार्टी के जो बराबर महंगाई रोकने के लिए प्रदेश सरकारों को दोषी करार देती चली आई है, एक शब्द भी जिलाधिकारी के समर्थन में नहीं बोले। भाजपा व अन्य पार्टियां भी खामोश रही केवल भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सह सचिव रणधीर सिंह सुमन ने एक सार्वजनिक मंच से जिलाधिकारी के प्रयास को सराहा।
बात साफ़ हो गयी कि साम्राज्यवादियों की गिरफ्त में पूर्णतया जकड चुकी केंद्र की सरकार महंगाई रोकने में न कोई दिलचस्पी रखती है और न ही दूसरी पार्टियां जो प्रदेश में सत्तासीन हैं । यूँ ही वायदा कारोबार जो कि जमाखोरी को बढ़ावा देता है, जारी रहा।

मोहम्मद तारिक खान

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