मंगलवार, 22 दिसंबर 2009

उलेमा को मुसलमानों के भविष्य की नहीं कांग्रेस की चिंता

मुसलमानों के अधिकारों की रक्षा करने का दावा करने वाले उलेमा की जमात मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड ने कहा है कि बाबरी मस्जिद की शहादत के लिए मुसलमान कभी भी कांग्रेस को माफ़ नहीं कर सकता । बोर्ड का बयान ठीक उस वक्त आया है जब देर से सही मगर दुरुस्त तौर पर रंगनाथ कमीशन की रिपोर्ट संसद के पटल पर रखी गयी है। रिपोर्ट में मुसलमानों को शिक्षा के क्षेत्र व सरकारी नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश की गयी है। स्वतन्त्र भारत में शायद यह पहली सरकारी रिपोर्ट होगी जिसे मुस्लिम आरक्षण की सिफारिश के बावजूद किसी सरकार ने संसद में विचार विमर्श के लिए सदस्यों के सामने रखा हो वर्ना इससे पूर्व मुसलमानों की आर्थिक सामाजिक व शैक्षिक बदहाली दूर करने के उद्देश्य से जितने भी कमीशन बने उन्हें उस समय की कांग्रेस की सरकारों ने केवल इस लिए रद्दी की टोकरी में डाल दिया कि कमीशन की हर रिपोर्ट में मुसलमानों को शिक्षा एवं सरकारी नौकरियों में आरक्षण दिए जाने कि सिफारिश की गयी थी। चाहे वह गुलाब सिंह पैनल रिपोर्ट हो या आई के गुजराल कमेटी कि रिपोर्ट ।


बड़ी हिम्मत कर के इस बार केंद्र कि यू पी ए सरकार ने रंगनाथ कमीशन की रिपोर्ट को लोकसभा में रखा है। मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के लखनऊ अधिवेशन में जो संसद में रंगनाथ कमीशन की रिपोर्ट प्रस्तुत करने के एक सप्ताह कि भीतर नदवा युनिवर्सिटी के प्रांगण में उसके प्रबंधक व बोर्ड के अध्यक्ष राबे हसन नदवी की अध्यक्षता में हुआ बाबरी मस्जिद को तो याद किया गया परन्तु मुसलमानों की बदहाली दूर करने के लिए पेश हुई रंगनाथ कमीशन की रिपोर्ट पर एक शब्द भी नहीं कहा गया है । क्या देश में मुसलमानों को एक संपन्न एवं सुखी जीवन उनके अधिकारों में नहीं आता मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड केवल मजहबी शिक्षा तक ही मुसलमानों के हकूक सीमित रखना चाहता है, क्या इसी लिए मुसलमानों कि उन्नति के उद्देश्य से रंगनाथ कमीशन द्वारा की गयी सिफारिशों पर उलेमा खामोश रहे या किसी दल विशेष से भागते हुए मुस्लिम मतदाताओं के कदमो को रोकने के लिए मुसलमानों के 17 साल पुराने दर्द को कुरेदा गया है वैसे अधिवेशन से मात्र एक सप्ताह पूर्व मुलायम सिंह का नदवा जाना और उसके पश्चात कांग्रेस के विरुद्ध मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड का बयान आना, अपने आप सारी दास्तान सुना रहा है।

-तारिक खान

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