रविवार, 3 जनवरी 2010

भौतिक संसाधनों के लिए आबरू का परित्याग

आज कल हरियाणा के पूर्व डी.जी.पी एस.पी राठौर पूरे देश की मीडिया की सुर्ख़ियों में है। इतना ही नहीं उनकी शोहरत अथवा बदनामी सदन में भी खूब गूंजी । ग्रह मंत्रालय से लेकर कानून मंत्रालय और यहाँ तक कि प्रधानमंत्री के माथों की शिकन तक राठौर की करतूतें जा पहुंची । पूरे देश में हमदर्दी व सहानभूति की एक लहर रुचिका गिरहोत्रा के लिए उठ खड़ी हुई और एस.पी.एस राठौर के विरुद्ध आक्रोश व ज्वालामुखी फूट पड़ा और यह सब इसलिए हुआ कि टेनिस की युवा प्रतिभा का चिराग, बताते हैं कि एस.पी.एस राठौर की बदचलनी की वजह से बगैर रौशनी तक पहुंचे बुझ गया।
यह कहानी तो वह है जो मीडिया के सहारे मांजरे आम तक आ आगयी वर्ना ऐसी बहुत सी रुचिका हैं जिनकीं चीखें अमीरों, राजनेताओं व अधिकारीयों के बेडरूम की लीक प्रूफ दीवारों के अन्दर घुट कर रह गयी। कुछ तो शर्मो हया में तो कुछ अपनों की खातिर मजबूरी में। मगर कुछ ऐसी बालाएं भी हैं जो फॉर फन अपनी अस्मत को लुटाती फिरती हैं तो कुछ बड़े घर की लक्ष्मियाँ भी अपनी देह की भूख मिटाने के लिए स्टड बॉय या जिगोलो को सेवाएं मोती रकम चुका कर प्राप्त करती हैं ।
मीडिया के दोनों हाथों में लड्डू हैं। वह रुचिका के परिवार की कुंठा व उनके दर्द के एहसासात को भी प्रमुखता से छापती या दिखाती फिरती हैं तो वहीँ दूसरी ओर भाभियों व अम्माओं की अय्याशी की दास्तान का बखान मारते भी उन्हें तनिक लज्जा नहीं आती है।
उसके बावजूद भी हमें गर्व है कि हम तरक्की कर रहे हैं। हो सकता है कि देश में बढती बेहयाई व बगैरती को हम तरक्की कह रहे हों। आज तरक्की के लिए लोग अपने घर की हया, शर्म और इज्जत सब कुछ दांव पर लगा देते हैं उनके लिए तरक्की का लक्ष्य भौतिक सुख संसाधन है भले ही उनके नैतिक आत्म बल का पतन हो रहा हो। पहले लोग घर की इज्जत आबरू के लिए अपनी जान जोखिम में डाल कर उनकी रक्षा करते थे आज भौतिक सुख संसाधन पाने की लालसा में वह अपने घर की लक्ष्मी को चौराहे पर नीलाम करने से लेकर दूसरे के बिस्तर पर पहुंचाने से गुरेज नहीं करते। बड़े शहरों में अब वह दिन दूर नहीं कि यूरोप व अमेरिका के क्लबों की तरह ओरगी की रात्रि क्रियाएं सरेआम शुरू हो जाएँ।
आज देश में हालात यह है कि प्रशासनिक पदों पर बैठे उच्च अधिकारी जो पहले धन की रिश्वत छोटे-मोटे कामो में लेते थे अब जिन्दा गोश्त के सेवन से परहेज नहीं करते बल्कि जिसकी बीवी गोरी उसकी तरक्की आसान चाहे वह सर्विस में हो या कारोबार में। आज स्त्रियों के लिए समाज के हर हिस्से में जगह तो देने की बातें होती है परन्तु शायद सम्मान के लिए कम उनके शोषण के लिए अधिक।
ऐसे में राठौर जैसे अधिकारी भी पैदा होते रहेंगे और रुचिका जैसी अबलायें शिकार होती रहेंगी हमें अपनी संस्कृति जो हमारे बुजुर्गों से विरासत थी उसे तरक्की की चाह में कुर्बान नहीं कर देना चाहिए बल्कि नैतिक बल के साथ यदि हम उन्नति के पथ पर चलें तो वह तरक्की पायदार भी होगी और बरकत भी बनी रहेगी।

मो॰ तारिक खान

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