गुरुवार, 21 जनवरी 2010

देश की राजनीति की दिशा व दशा

राहुल गांधी ने देश की सभी राजनीतिक पार्टियों में लोकतंत्र के अभाव की बात कहकर एक अच्छा मुद्दा उठाया है। साथ ही उन्होंने पार्टियों में बढ़ते धन्नासेठों व बाहुबलियों के वर्चस्व तथा वंशवाद की परम्परा पर भी उंगली उठाई है।
राहुल ने जिस मकसद से भी यह मुद्दे उठाए हैं परन्तु उनका यह वकतव्य स्वागत करने योग्य है। आज देश के हर राजनीतिक दल लगभग एक समाज अवगुणों से जूझ रहे हैं।
किसी दल की कोई विचारधारा अमल के मामले में नहीं दिखती। कांग्रेस पर सत्ता के बाहर रहकर जो, जो आरोप भाजपा लगाया करती थी कमोवेश उसी प्रकार की कार्यशैली उसकी भी सत्ता में आने के पश्चात देखने को मिली। समाजवादियों के समाजवाद की भी कलई अमर सिंह ने पार्टी में आकर खोल दी। मायावती की पार्टी तो केवल उनके नादिरशाही फरमानों पर ही केन्द्रित है। राजगा, तेलगुदेशम, त्रिमूल कांग्रेस, एन0सी0पी0, डी0एम0के0, ए0डी0एम0के0, लोकदल, शिवसेना, एम0एन0एस0, इत्यादि सभी दल व्यक्ति विशेष पर आधारित हैं। इनमें से किसी भी दल में भी लोकतंत्र नजर नहीं आता।
वाम पंथियों की हालत इस मामले में कुछ बेहतर है वह भी इसलिए कि उन्होंने केन्द्र में अभी तक सत्ता का स्वाद नहीं चखा है। वह केवल त्रिपुरा, केराला व पश्चिम बंगाल तक ही सीमित रहे।
जहां तक राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र की बात है तो उसमें कांग्रेस ही देश में एक ऐसी जमात रही जिसमें काफी हद तक यह प्रण रहा और आज भी मौजूद है। इसी कारण कांग्रेस पार्टी का विभाजन कई बार हो चुका है और वाम पंथियों को छोड़कर लगभग सभी राजनीतिक दलों के वजूद की जननी कांग्रेस पार्टी ही रही है।
परन्तु बाद में कांग्रेस वंशवाद के रोग से ग्रसित हो गई और पहले इन्दिरा गांधी, फिर संजय गांधी, उसके बाद राजीव गांधी व अब राहुल गांधी उसी परम्परा की कड़ियाँ हैं। अब नौबत यहां तक आ पहुंची है कि मानो नेहरू परिवार के बिना कांग्रेस का वजूद व उसकी हस्ती ही कुछ नहीं।
इसी प्रकार पूंजीपतियों व बाहुबलियों के बढ़ते वर्चस्व के कारण आज की राजनीति में साधारण आदमी का कोई स्थान ही नहीं रह गया है लगभग हर पार्टी में बाहुबलियों व धन्नासेठों का कब्जा है और अब तो हालत यहां तक आन पहुंची है कि ग्राम पंचायत स्तर का चुनाव भी गरीब आदमी नहीं लड़ सकता। ग्राम प्रधान के चुनाव में लोग लाखों खर्च इस नीयत से करते हैं कि जीतने के बाद करोड़ों कमायेंगे। विधान परिषद विधायक या लोकसभा सदस्य का चुनाव तो करोड़ों रूपये का खेल बन चुका है।
यही कारण है कि एक ही तरह के तत्त हर राजनीतिक दल में आज नजर आते हैं। और सत्ता परिवर्तन पर यह तत्व पार्टियों की अदला बदली करते रहते हैं और यही हाल समर्थकों को का भी रहता है जो शहरों व ग्रामीण आंचलों में रहते हैं हमेशा सत्ता के साथ अपना झण्डा व वस्त्र बदलने से यह तनिक भी नही शरमाते।
राहुल गांधी द्वारा उठाए गये मुद्दे तो आंदोलनकारी है परन्तु यह आन्दोलन करेगा कौन? उन्ही के राजनीतिक दल कांग्रेस के संगठनात्क चुनाव प्रदेश में होने हैं। मेम्बर साजी 31 दिसम्बर तक पूरी हो गई। जो नये मेम्बर कांग्रेस के बने हैं उनमें से किसी को कांग्रेस के संविधान या नीतियाँ का ज्ञान नहीं जबकि मेम्बर साजी के फार्म में साफ साफ लिखा है कि वह कांग्रेस का संविधान पढ़कर इसे समझकर मेम्बर बन रहे हैं। अब यह मेम्बर आगे चलकर कांग्रेस के लिए कितने सार्थक होंगे?
देश की राजनीतिक दिशा व दशा सुधारने के लिए स्वतंत्रता संग्राम की भांति सम्भ्रांत परिवार के सुशील सदाचारी, सभ्य, देश भक्त, समाजसेवा भाव से ओतप्रोत लोगों को राजनीति में आना होगा जैसा कि स्वतंत्रता संग्राम के समय अंग्रेजों का मुकाबला करने के लिए एक से एक सर्वग्रणी योग्य, सम्पन्न परिवार के लोग आगे आये थे। आज यदि किसी सामान्य नागरिक से पूछा जाता है कि आप अपने परिवार के सबसे उदीयमान लड़के को क्या बनाना चाहेंगे तो वह इंजीनियर, डाक्टर या वैज्ञानिक बनाने की बात करता है? राजनीति में लोग उसी लड़के को डालने की सोचते हैं जो पढ़ाई में फिसड्डी, मुंह व हाथ पैर का शहजोर हो।

मोहम्मद तारिक खान

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