सोमवार, 6 सितंबर 2010

इफ्तार पार्टियों की फिजूलखर्ची ने कम कर दी,इफ्तार की रौनक

बाराबंकी(मो0तारिकखान)। रमजान शरीफ का अंतिम सप्ताह ईद की ओर अग्रसर है।साथ ही इफ्तार पार्टियों का भी जोर जोरा  तेजी से जारी है।परन्तु इफ्तार पार्टियाॅ आयोजित करने में आम जनमानस की दिलचस्पी कम राजनीतिक व सामाजिक प्रतिष्ठा को और अधिक बल देने वाली शख्सियतों की दिलचस्पी अधिक नजर आ रही है। आम जनमानस की ओर से घटती जा रही इफ्तार पार्टियों के पीछे मुख्य कारण धन्नासेठो व राजनीतिज्ञों द्वारा अपनी इफ्तार पार्टियों में फिजूल खर्ची व बेबहा दौलत का प्रदर्शन है। जो आम आदमी के सामर्थ के बाहर है।
 रमजान शरीफ के पवित्र माह में रोजा इस्लाम धर्म के द्वारा बताए गए पाॅच जरुरी अहकामों में से एक है। ऐसी मान्यता है कि इंसानों को सिरातउल मुस्तकीम अर्थात सीधी राह पर चलने की तरबियत इसी माहे मुबारक में दी जाती है और पवित्र कुर्वान के मुताबिक मुसलमानो के अतिरिक्त दूसरी कौमो पर भी यह रोजे (व्रत)फर्ज किए गए थे जो आज भी अन्य धर्मो मंे किसी न किसी रुप में बरकरार है।सभी धर्मो में बताए गए रोजो का मुख्य उद्देश्य इंसानो को संयम शील बनाना है।रोजे के दौरान केवल भूख प्यास पर काबू पाने को नही कहा जाता बल्कि इंसान के व्याकुल मन से उपजने वाले दुव्र्यसनों पर भी आत्मनियन्त्रण रखने का हुक्म दिया जाता है। इस्लाम में इफ्तार पार्टियों को भी इबादत का दर्जा हासिल है।दिन भर का भूखा प्यासा रोजादार शाम को सूर्यास्त होने पर जब सूक्ष्म जलपान से अपना रोजा तोड़ता है तो उससे पहले उसके दिल व मुॅह से निकलने वाली दुआ कहा जाता हैं तुरन्त कुबूल होती है।
 परन्तु आज के इस व्यवसायिक समाज के परिवेश में इफ्तार पार्टियों में इबादत की जगह लोगो की बदनीयती व स्वार्थ ने ले ली है। आज स्थिति यह है कि बड़े बड़े राजनेता ऊॅची ऊॅची टोपी पहनकर व काॅधे पर रुमाल डालकर किसी भी आम मुसलमान से बड़ा मुसलमान होने का नाटक करते हुए बड़े ही अकीदत व एहतराम से इफ्तार पार्टियों का आयोजन करते है।इन पार्टियों में शिया व सुन्नी दोनो ही समुदाय के उलेमा शेरवानी व कुर्ता पहनकर महंगे पकवानों से आरास्ता दस्तरख्वान पर बैठकर इफ्तार से ज्यादा बड़े नेताओं के साथ अपनी फोटो खिचवाने में ही अपनी आफियत समझते है।
 छोटे पैमाने पर जिलो में छोटे नेता अपने बड़े नेताओं के पदचिहनों पर चलकर अपनी ओर से भी इफ्तार पार्टियों का आयोजन करते है।कहने को तो वह यह कहकर इन पार्टियों का आयोजन करते है कि सर्वधर्म सदभाव इनका मकसद है परन्तु इनका असल मकसद खालिस स्वार्थ पर आधारित अपनी राजनीतिक आवश्यकताओं की पूर्ति है।इसी प्रकार समाज का वह तबका जो अपने कुछ असमाजिक कार्यो की वजह से अपनी सामाजिक छवि को दागदार कर चुका होता है।वह भी अपने अवैध आमदनी के पैसे से अपनी सामाजिक छवि सुधारने के लिए यह पवित्र इफ्तार पार्टियाॅ आयोजित करता है और मस्जिदों से लेकर अन्य महफिलों मंे हराम पैसे से इफ्तार पार्टियों में शिरकत न करने की आम  मुसलमानांे से अपील करने वाले धार्मिक विद्वान इन पार्टियो मे ंअगली सफो मे ंनजर आते है।
 इस प्रकार इफ्तार पार्टियों के आयोजन और इसमें की जा रही फिजूल खर्ची ने आम जनमानस की दिलचस्पी इफ्तार पार्टियोे के आयोजन से कम कर दी है।पहले जहाॅ मोहल्ले मोहल्ले तराबीह के खत्म होने के पश्चात 15 रमजान के बाद से इफ्तार पार्टियो के आयोजन का सिलसिला चल पड़ता था।छात्र एवं छात्राएं अपने सह पाठियांे को रिश्तेदार अपने अजीज व कारिब को बड़े ही उत्साह के साथ अपने घर इफ्तार की दावत दिया करते थे। इन पार्टियोे मे केवल इफ्तारी की सामग्री जैसे खजूर चाट के कुछ आइटम जैसे आलू टिक्की,पालकी, आलू चाट तथा पकौड़ी व दही फुलकी हुआ करती थी।इसके अतिरिक्त फलों मे केले सेब अनार पपीता अमरुद व इससे निर्मित फ्रूट चार्ट कचालू व कस्टर्ड होता था।मीठे में गुलगुले खीर या अधिक से अधिक शाही टुकड़ा होता था।नमाज अदा किये जाने के पश्चात यदि जाड़ा है तो चाय या काफी और यदि गर्मी है तो रुहआफजा या स्क्वैश के शर्बतों से रोजेदार की खातिर की जाती थी।
 परन्तु फिजूल खर्ची के चलन ने इफ्तार के साथ साथ पूरी दावत का इंतजाम इफ्तार पार्टियों मेें अब कर दिया है।इसकी शुरुआत पहले रोजा कुशाई की इफ्तार पार्टियेा से हुई और फिर यह चलन फैलकर धन्ना सेठो व  राजनेताआंे की इफ्तार पार्टियेा के दस्तरख्वान पर पहुॅच गया।अब इफ्तार नाम चार का होता है,नमाज के पश्चात पूरी शादी बारात का खाना जिसमें मुर्ग मुसल्लम रोस्टेड फ्राई से लेकर मुर्ग कोरमा,मटन कोरमा, रहता है।फिर शीरमाल कुल्चा,तंदूरी रुमाली के साथ शामी कबाब  या सींक कबाब इफ्तार पार्टियोे की जीनत बनता है।उपर से पुलाव/बिरयानी जर्दा खीर व शाही टुकड़ा इफ्तार पार्टियों की शान बढाता है।
 परन्तु यह मीनू आम जनमानस की जेब के सामथ्र्य के बाहर होने के कारण वह मन मसोस के अब इफ्तार पार्टियां आयोजित करने से परहेज करता है।इस प्रकार अब इफ्तार पार्टियाॅ धार्मिक अनुष्ठान न होकर व्यवसायिकता के गिलाफ मेें लिपट चुकी है।जिससे आम आदमी किराहियत (घिन) करने लगा है।

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