भाकपा के राष्ट्रीय सचिव एवं अखिल भारतीय किसान
सभा के राष्ट्रीय महामंत्री अतुल कुमार अंजान ने कहा कि सरकारों की किसान
विरोधी नीतियों के कारण खेती, किसानी, गांव, देश बर्बाद हो रहे हैं। कर्ज
के बोझ के चलते पांच लाख से अधिक किसान आत्महत्या कर चुके हैं। वादे के
बावजूद डा. स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट लागू नहीं हो रही है। भारत के
विकास का नारा चंद कारपोरेट घरानों के लिए है। देश की 65 से 70 प्रतिशत
आबादी के लिए नहीं है।
वह सरजू पांडेय पार्क में आयोजित सभा में बोल रहे
थे। बता दें कि किसानों की 20 सूत्रीय मांगों को लेकर उत्तर प्रदेश किसान
सभा की तरफ से दो प्रदेशस्तरीय जनजागरण यात्रा एक सरजू पांडेय पार्क एवं
दूसरी मथुरा से सोमवार को शुरू हुई। इस अवसर पर सरजू पांडेय पार्क में हुई
सभा में अंजान ने कहा कि इन लोगों के विकास के बिना तरक्की का नारा पूरी
तौर पर बेईमानी है। पूंजीवादी विकास के रास्ते ने मानवता को तार-तार कर
दिया है।
मोदी सरकार ने जो वादा किया उसे पूरा तो नहीं कर रही है, उल्टे जनता का ध्यान हटाने के लिए हैदराबाद, जेएनयू आदि विश्वविद्यालयों की स्वायत्ता पर धावा बोल रही है। कहा कि इनके विकास के दायरे में सिर्फ और सिर्फ देशी-विदेशी पूंजीपति हैं, किसान कहीं नहीं है। सबका साथ, सबके विकास की थोथी बातें बंद करनी होगी। ऐसे हालात में खेती, किसान, गांव, देश बचाने के लिए जाति-धर्म, दल से ऊपर उठकर किसान समुदाय को संगठित होकर 20 मई को लखनऊ विधानसभा के सामने एकत्र होना होगा।
इस अवसर पर प्रदेश महामंत्री पूर्व विधायक राजेन्द्र यादव, पूर्व सांसद विश्वनाथ शास्त्री, कृपाशंकर सिंह, अखिलेश राय, सूर्यनाथ यादव, जयराम सिंह, जनार्दन राम, ब्रजभूषण दुबे, प्रो. केएन सिंह आदि ने विचार व्यक्त किया।
मोदी सरकार ने जो वादा किया उसे पूरा तो नहीं कर रही है, उल्टे जनता का ध्यान हटाने के लिए हैदराबाद, जेएनयू आदि विश्वविद्यालयों की स्वायत्ता पर धावा बोल रही है। कहा कि इनके विकास के दायरे में सिर्फ और सिर्फ देशी-विदेशी पूंजीपति हैं, किसान कहीं नहीं है। सबका साथ, सबके विकास की थोथी बातें बंद करनी होगी। ऐसे हालात में खेती, किसान, गांव, देश बचाने के लिए जाति-धर्म, दल से ऊपर उठकर किसान समुदाय को संगठित होकर 20 मई को लखनऊ विधानसभा के सामने एकत्र होना होगा।
इस अवसर पर प्रदेश महामंत्री पूर्व विधायक राजेन्द्र यादव, पूर्व सांसद विश्वनाथ शास्त्री, कृपाशंकर सिंह, अखिलेश राय, सूर्यनाथ यादव, जयराम सिंह, जनार्दन राम, ब्रजभूषण दुबे, प्रो. केएन सिंह आदि ने विचार व्यक्त किया।
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