शनिवार, 4 मार्च 2023

योगी कहते है रामराज्य की तरह से चलेगे - गोलवलकर कहते हैं शब्दों के दास न बनें

लखनऊ 3 मार्च 2023. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की पांडिचेरी में होने वाली मीटिंग के कारण मैं कई दिनों से उत्तर प्रदेश से बाहर था। उत्तर प्रदेश में वापस लौटे तो दो मार्च का अमर उजाला पढ़ने को मिला। उसके पहले पेज पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री जी का एक विधानसभा में दिया हुआ व्याख्यान छपा है। मैं उस व्याख्यान को 'अमर उजाला' से उद्धृत कर रहा हूँ। मुख्यमंत्री जी कहते हैं: " समाजवाद सबसे बड़ा पाखंड है। उत्तर प्रदेश समाजवाद की नहीं बल्कि रामराज की धरती है। देश समाजवाद से नहीं रामराज से ही चलेगा।..... आगे कहते हैं : "रामराज की स्थापना समाजवाद से नहीं बल्कि दृढ़ संकल्प से होगी। समाजवाद बहुरूपिया ब्रांड है। प्रगतिशील समाजवाद , लोकतांत्रिक, प्रजातांत्रिक और उसके अलावा पारिवारिक समाजवाद। यह क्या प्रदेश का कल्याण कर पाएंगे ।अमीरों को गरीब, गरीबों को गुलाम, बुद्धिजीवियों को बेवकूफ और नेताओं को खुद को शक्तिशाली बनाने का सबसे बड़ा पाखंड ही समाजवाद है ।समाजवाद कहीं भी समृद्धि नहीं ला पाया है।..... " मुझे बहुत हैरानी नहीं होती है जब हिंदुत्ववादी व्यक्तित्व समाजवाद के विरुद्ध बोलते हैं और उसके जाने क्या-क्या नाम धरते हैं ।ऐसा सिर्फ भारत में ही नहीं होता है अपितु पूरे विश्व में होता है। क्योंकि समाजवाद से, उसके सिद्धांतों से पूंजीवाद का पोषण करने वाली शक्तियां डरती है। मुख्यमंत्री जी जिस विचारधारा को मानते हैं उस विचारधारा के आदि पुरुष श्री गोलवलकर अपनी कृतियों में कहते हैं: ".....आजकल दोनों में से अर्थशास्त्र अधिक महत्वपूर्ण तत्व बन गया है। इस संबंध में समाजवाद को इसका आदर्श माना जाता है। इसलिए इसके वास्तविक सारतत्व स्वरूप को समझना नितांत असंभव हो गया है। श्रेणी समाजवाद ,अराजकतावाद ,श्रमिक संघवाद, साम्यवाद आदि समाजवाद के विभिन्न स्वरूप कहे जाते हैं। यह चाहे कुछ भी हो हम शब्दों के दास क्यों बने? यह सर्वथा उचित होगा कि हम अपनी इस भूमि की प्रतिमा को प्रतिबिंबित करने वाली मूल विचारधारा के अनुरूप नया चिंतन प्रारंभ करें। हां अन्य विचारों में यदि कोई सकारात्मक तत्व हमारे लिए उपयोगी हो तो उन्हें अवश्य ही ग्रहण करना चाहिए।.." (श्री गोलवलकर की पुस्तक 'विचार नवनीत' पंचम संस्करण ,मकर संक्रांति ,संवत 2071 , प्रकाशक ज्ञान गंगा प्रकाशन, जयपुर ,राजस्थान पेज 30 एवं 31) श्री गोलवलकर जी के उपरोक्त वर्णित विचारों में जरा आखरी वाक्य पर गौर करें जिसमें वह कहते हैं "हां अन्य विचारों में यदि कोई सकारात्मक तत्व हमारे लिए उपयोगी हो तो उन्हें अवश्य ही ग्रहण करना चाहिए ।" ऐसे विचार वह रणनीति के हिसाब से प्रतिपादित करते प्रतीत हो रहे हैं । वास्तव में अपने संगठन के लोगों के लिए सब रास्ते खुले रखना चाहते हैं जरा आगे देखिए। श्री गोलवलकर जी का स्वर्गवास तो वर्ष 1973 में हो गया था । 7 वर्षों के पश्चात जब भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ तो भारतीय जनता पार्टी के उद्देश्यों में "गांधीवादी समाजवाद" लिखा गया! गूगल सर्च में जाने से भारतीय जनता पार्टी के विधान को भी देखा ।उक्त विधान को जनवरी 2008 का दिखाया गया है। विधान की धारा 2 उद्देश्य शीर्षक में लिखा गया है कि "पार्टी विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान तथा समाजवाद ,पंथनिरपेक्षता और लोकतंत्र के सिद्धांतों के प्रति सच्ची आस्था और निष्ठा रखेगी तथा भारत की प्रभुसत्ता एकता और अखंडता को कायम रखेगी" तो समाजवाद की बात से तो भारतीय जनता पार्टी भी कहां दूर रही? अलग बात है कि अब उसके नेता समाजवाद को पाखंड बता रहे हैं। हम कम्युनिस्ट वैज्ञानिक समाजवाद को मानते हैं और वह समाज के ठोस तथ्यों के आधार पर खड़ा किया गया सिद्धांत है। वह सामाजिक परिस्थिति का सही चित्र हमारे सामने रखता है और आज के पूंजीवादी समाज को जो शोषण के आधार पर टिका हुआ है को बदलकर नए समाजवादी समाज के निर्माण का रास्ता बतलाता है। भले ही उस लक्ष्य को प्राप्त करने में कितनी भी प्रतीक्षा करनी पड़े। इतिहास गवाह है समाजवाद का विरोध करने वाले न जाने कितने आए और चले गए। चले गए इतिहास के अंधकार में । उनको कभी याद नहीं किया जाता। मानव के द्वारा मानव का शोषण और शोषण पर आधारित व्यवस्था का समाप्त होना अवश्यंभावी है और जब शोषण की व्यवस्था समाप्त होगी तो समाजवाद का निर्माण भी होना अनिवार्य है। चाहे समाजवाद को कोई भी कितना कोसता रहे। भारतीय जनता पार्टी के राज में एक बात तो जरूर बदलती हुई दिखाई देती है कि संविधान के मूलभूत सिद्धांतों का उनके द्वारा विरोध किया जाता है जो संविधान के प्रति आस्था की शपथ लेकर पदों पर बैठते हैं । भारत का प्रत्येक नागरिक भारत के संविधान के प्रति आस्थावान है और वह भारत के संविधान की उद्देशिका का पूर्ण समर्थन करता है और उसके प्रति प्रतिबद्ध है । इसलिए समस्त चुने हुए प्रतिनिधि, संविधान की शपथ लिए हुए प्रतिनिधि, उक्त उद्देशिका को दोबारा अगर देखलेंगे तो कोई हर्ज न होगा। भारतीय संविधान की प्रस्तावना । ” हम, भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए और उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म व उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता तथा अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।" अरविन्द राज स्वरूप राज्य सचिव भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी उत्तर प्रदेश

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