मंगलवार, 20 जून 2023

गांधी हत्या में गिरफ्तार हनोमान प्रसाद पोद्दार गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा

हिंदू धर्म के साहित्य की छपाई और वितरण के लिए प्रसिद्ध ‘गीता प्रेस’ को वर्ष 2021 का ‘गांधी शांति पुरस्कार’ देने की घोषणा पर विवाद छिड़ गया है। कांग्रेस का कहना है क‍ि यह सावरकर और गोडसे को सम्‍मान‍ित करने जैसा है। भाजपाई खेमा इसे सनातन संस्‍कृत‍ि और आधार ग्रंथों को जन-जन तक पहुंचाने के गीता प्रेस के काम का सम्‍मान बता रहा है। इस बीच, गीता प्रेस ने सोमवार को पुरस्कार लेने की घोषणा करते हुए बताया, “यह सम्मान हमारे लिए हर्ष की बात है। लेकिन, बोर्ड ने यह फैसला लिया है कि सम्मान के साथ मिलने वाली धनराशि को स्वीकार नहीं किया जाएगा।” गांधी हत्या मामले में गिरफ्तार हुए थे गीता प्रेस के फाउंडर साल 1923 में दो मारवाड़ी व्यापारियों जयदयाल गोयनका और हनुमान प्रसाद पोद्दार ने गीता प्रेस और ‘कल्याण’ पत्रिका की स्थापना की थी। 30 जनवरी, 1948 को दिल्ली के बिड़ला हाउस में नाथूराम गोडसे ने गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी थी। अक्षय मुकुल की क‍िताब के मुताब‍िक, गांधी की हत्‍या के बाद देश में 25,000 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया था, जिनमें पोद्दार और गोयनका भी शामिल थे। गिरफ्तारी के बाद गांधी के मित्र, सलाहकार, प्रशंसक एवं सहयोगी घनश्यामदास बिड़ला ने पोद्दार और गोयनका की मदद करने से इनकार कर दिया था। पत्रकार अक्षय मुकुल ने अपनी किताब ‘गीता प्रेस एंड द मेकिंग ऑफ हिंदू इंडिया’ में लिखा है कि “जब सर बद्रीदास गोयनका गीता प्रेस से संस्थापक का केस लड़ने आगे आए, तो बिड़ला ने उनका भी विरोध किया। बिड़ला की नजरों में दोनों सनातन धर्म का प्रचार नहीं कर रहे थे बल्कि शैतान धर्म का प्रचार कर रहे थे।” मुकुल इस बात पर आश्चर्य व्यक्त करते हैं कि गांधी हत्या से जुड़ी इस घटना का जिक्र पोद्दार की प्रशंसनीय आत्मकथाओं की सीरीज में भी नहीं मिलती है। इसका एकमात्र संदर्भ पोद्दार की जीवनी की एक अप्रकाशित पांडुलिपि में है, जिसमें बताया गया है कि पोद्दार 30 जनवरी 1948 को दिल्ली में थे। पत्रकार का दावा है कि कल्याण पत्रिका ने गांधी हत्या पर चुप्पी साध ली थी। कल्याण के फरवरी और मार्च 1948 के अंक में गांधी का कोई जिक्र तक नहीं किया गया। जबकि गांधी के लेखन पर कल्याण हमेशा नजर रखता था। पत्रिका में उसपर चर्चा होती थी। हनुमान प्रसाद पोद्दार भी पहले गांधी के करीबी माने जाते थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्‍यक्षता वाली चयन सम‍ित‍ि के फैसले को जो खेमा सावरकर और गोडसे का सम्‍मान बता रहा है, वह दलील में एक क‍िताब में ल‍िखी बात का हवाला दे रहा है। यह क‍िताब पत्रकार अक्षय मुकुल की ल‍िखी हुई है। इसका नाम है- ‘गीता प्रेस एंड द मेकिंग ऑफ हिंदू इंडिया’।

1 टिप्पणी:

C.p.i aituc rajy krmchri mahsang sambeda outsorsing srmik mhasang ने कहा…

ऊटपटांग चरावे निहुरे निहुरे।