गुरुवार, 24 दिसंबर 2009

सेरोगेटेड़ मां विज्ञान की उपलब्धि या सामाजिक अभिशाप

जर्मनी को एक एक जोड़ा आजकल अपने सेरोगेतेड बालकों को वापस ले जाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के चक्कर लगा रहा है। जान ब्लास और सुजर नाम के पति पत्नी नि:संतान थे , ने भारत के गुजरात प्रान्त आकर आनंद अस्पताल में डॉक्टर नयना पटेल की सहायता से किराए की कोख हासिल कर दो जुड़वाँ पुत्रों की प्राप्ति की। इनके नाम निकोलस एवं ल्युनार्ड रखे गए परन्तु जर्मनी ले जाने के लिए उन्हें दिक्कत राष्ट्रीयता की आ गयी इसलिए वह जर्मनी भारत के कानून के बीच अपने मासूमो को पाने की जद्दोजद में लगे हुए हैं।
संतान विहीन दम्पतियों के लिए टेस्ट ट्युब बेबी के तौर पर एक हसीन तोहफा ले कर आया और सूने घरों में भी उम्मीद का चिराग जल उठा। टेस्ट ट्युब बेबी का जन्म दो प्रकार से हो सकता है। एक स्वयं उसी महिला के गर्भाशय में सीधे निषेचन के बाद भ्रूण को स्थापित कर उसी मां के पेट से बच्चे का जन्म करा कर और दूसरा तरीका यह है कि किराये की कोख से निकले बच्चे को सेरोगेटेड़ चाइल्ड कहा जा सकता है और मां को सेरोगेटेड़ मदर।
भारत में सेरोगेसी का कोई कानून अभी तक नहीं बना है। केवल सेरोगेट अस्पताल रजिस्टर्ड हो कर देश के चंद बड़े शहरों में चल रहे हैं। गुजरात प्रान्त का आनंद अस्पताल उनमें से एक है। यहाँ की डॉक्टर नयना पटेल को सेरोगेट बच्चे को पैदा करने में महारत हासिल है। एक समय में उनके पास 50 से 60 केस हाथ में रहते हैं। जर्मनी के जॉन ब्लास व सूजर भी उनकी ख्याति सुन कर जर्मनी से यहाँ पहुंचे। भगवान ने उन्हें दो जुड़वाँ बच्चो से नवाजा जो एक गुजराती महिला की कोख से जन्में । निकोलस व ल्युनार्ड नाम के इन बच्चो का जन्म 4 जनवरी 2008 को हुआ परन्तु दंपत्ति बच्चों को अपने देश जर्मनी की नागरिकता न दिला पाने के कारण यहाँ भारत में अदालत व विदेश मंत्रालय के चक्कर काट रहे हैं । मामला सुप्रीम कोर्ट में है । इसी प्रकार दीक्षागुरू नाम की एक गुजरती महिला ने एक जापानी दंपत्ति को अपनी कोख 4 लाख रुपये पर अपने बीमार पति के इलाज के लिए पैसों की खातिर बच्चे को जन्म देकर दी। जापानी दंपत्ति को उनका बच्चा मिल गया क्योंकि जापान में सेरोगेट संतान की उत्पत्ति को मान्यता है जब की जर्मनी में नहीं।
सेरोगेसी की तकनीक से बच्चों को जन्म दिलाना विज्ञान की एक उपलब्धि है परन्तु इससे एक सामाजिक समस्या खड़ी होने का संकट है। भारत जैसे देश में जहाँ कई करोड़ इंसान प्रतिदिन भूखे सो जाते हैं जो अपनी भूख की आग बुझाने के लिए कुछ भी कर गुजरने की स्थिति में पहुँच चुके होते हैं, की मजबूरी का लाभ पैसे वाले देश से लेकर विदेशों में बैठे लाभ उठाने के प्रयास न करने लगे। फिर देश की संस्कृति व तहजीब पर भी खतरे के बादल मंडराने लगेंगे। यदि पैसों की खातिर इसी तरह कोख की नीलामी बेरोक टोक जारी हो गयी तो फिर विधवा या बेसहारा तलाकशुदा स्त्रियों का क्या होगा ? इन सब प्रश्नों पर गौर कर सरकार के विधि मंत्रालय को सेरोगेसी का कानून अवश्य बनाना चाहिए । आखिर क्या कारण है कि जर्मनी जैसे विकसित देश सेरोगेसी के विरुद्ध हैं ?

-तारिक खान

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