बाराबंकी।प्रदेश के बेसिक शिक्षा मंत्री ने भले ही कल सम्पन्न हुए साक्षर भारत मिशन 2012 के कार्यक्रम को सुचारु रुप से आयोजित करने पर जिला प्रशासन को अव्वल नम्बर दे दिए हो परन्तु कार्यक्रम की सफलता के पीछे नन्हे मुन्ने व युवा छात्र एवं छात्राओं ने धूप में खड़े होकर कई घण्टो तक अपना कितना पसीना बहाया और स्वच्छ पेयजल के अभाव में उनके स्वास्थ्य पर क्या बीती यह कोई न जान पाया।वह कहते है न कि शमा के जलने पर उसके भीतर क्या गुजरती है,यह बेचारी शमा की लौ ही जानती है।लोग तो उसका प्रकाश देखकर प्रसन्नचित होते है।
साक्षर भारत मिशन 2012 का सफल कार्यक्रम कल यहाॅ के0डी0सिंह बाबू स्टेडियम पर सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम की सफलता के पीछे एक दर्जन से अधिक जनपद के विद्यालयों के छात्रों एवं छात्राओं का परिश्रम युक्त योगदान रहा।हजारों की संख्या में यह बच्चे प्रातः साढे सात बजे डी0आर0डी0ए0 स्थित जिलाधिकारी कार्यालय पर प्रभात फेरी के लिए एकत्र हुए थे वहाॅ से कतार बद्ध होकर आधे शहर का भ्रमण करके यह काफिला स्टेडियम लगभग 9 बजे पहुॅचा।
चूॅकि कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बेसिक शिक्षा मंत्री डा0धर्म सिंह सैनी का स्टेडियम में आगमन 11 बजे पूर्वाहन् सुनिश्चित था,इस लिए स्काउट के कई सौ बच्चे धूप में प्रातः 9 बजे से ही वह मुख्य अतिथि के आगमन दोपहर 12 बजे तक भूखे प्यासे खड़े रहे।पीने के पानी की व्यवस्था मैदान से लगभग दो सौ मीटर दूर एक कोने में नगर परिषद के उस टैंकर के सहारे थी,जो प्रायः सड़क पर पानी छिड़कने या शादी व्याह के अवसरो पर बर्तन धोने के काम में लाया जाता है।बताते है कि नगर पालिका प्रशासन स्वयं यह कहता है कि टैंकर का पानी पीने योग्य नही है।फिर भी इस प्रदूषित जल को अबोध बच्चों की कमजोर प्रतिरोध क्षमता के आगे परोसा गया।बेचारे बच्चे प्यास के कारण यह प्रदूषित जल पीने को विवश थे।दूसरी ओर स्टेडियम में शौचालय के समीप लगे इण्डिया मार्का हैण्डपम्प पर पहले अपनी प्यास बुझाने लपके परन्तु हैण्डपम्प का पानी बदबू कर रहा था।इस कारण वह उल्टे पैर लौट पड़े और टैंकर में आकर जुट गए।एक विद्यालय के प्रबन्धक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि व्यवस्था का यह आलम था कि पानी तो मयस्सर ही न था जो पूड़ी सब्जी बच्चो को प्रशासन की ओर से कार्यक्रम की समाप्ति पर लगभग दो बजे बाटीं गयी तो उसकी ऐसी लूट मची कि किसी को एक भी पूड़ी न मिली और किसी के हिस्से में दर्जन भर आयी।अधिकांश विद्यालय प्रधानाचार्यो व प्रबन्धको ने अपने बच्चो के खान पान के लिए अलग से व्यवस्था की।
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