रविवार, 22 मई 2016

मुझे मेमसाहब, बहू समेत सबसे पूछताछ की इजाजत दीजिए, मामला खोल दूंगा


         


 

: जांच अधिकारियों ने मुख्य सचिव और डीजीपी तक से साफ कह दिया था कि यह चोरी नहीं है : दो दिन में दारोगाओं ने मामला फर्जी बताया है, पर डेढ़ महीने तक अड़े रहे डीजीपी : दारोगाओं को शुरू से ही शक था कि यह चोरी नहीं, घरेलू गोरखधंधा है : देख लो, बड़े बाबुओं की करतूतें- 36 :

--कुमार सौवीर
लखनऊ : मुख्यसचिव आलोक रंजन के घर हुई तथाकथित चोरी तो अब खुद आलोक रंजन के ही गले की फांस बन गयी है। इस मामले में दो युवकों को बेइम्तिहां और जघन्य प्रताड़ना देने के बाद संकेत मिल रहे हैं कि दरअसल यह चोरी का मामला था ही नहीं। जांच अधिकारियों की मानें तो यह घरेलू गबड़धंधा का मामला था, जिसका उद्देश्य एक-दूसरे पर बला डालना ही था।
आपको याद होगा कि आलोक रंजन के घर बेशकीमती हीरों का एक नेकलेस-सेट की चोरी के कथित मामले में पुलिस ने दो युवकों को जिले के विभिन्न थानों पर अमानवीय प्रताड़ना दी थीं। यह दोनों लोग सरकारी कर्मचारी थे जिनमें से एक राष्ट्रीय निगम नाफेड का क्लर्क था, जबकि दूसरा राज्य बीज निगम का चपरासी था। बताते हैं कि इन युवकों को मुख्यसचिव और डीजीपी के दबाव के चलते पुलिस ने गैरकानूनी तरीके से पुलिस हिरासत में रखा और इस बीच उनकी जमकर पिटाई भी की गयी। इस पूरे दौरान हुई जबर्दस्त प्रताड़ना से त्रस्त होकर एक कर्मचारी ने आत्महत्या करने तक की कोशिश की।
हालांकि इस नेकलेस की कीमत को लेकर तीस लाख रूपयों से लेकर डेढ़ करोड़ तक की चर्चाएं चल रही हैं, लेकिन अब तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि इसकी असल कीमत क्या थी। ऐसी हालत में उसकी कीमत को लेकर कोई ठोस निर्णय पुलिस अब तक नहीं पहुंच सकी है, लेकिन चूंकि जिस तरह से इस मामले में मुख्यसचिव और डीजीपी ने अपनी कमर कस रखी थी, उससे तो साफ पता चल रहा है कि इस हीरों वाला नेकलेस बेशकीमती ही था। लेकिन इस मामले में एक नया मोड़ सामने आया है। पता चला है कि मुख्यसचिव के घर कोई चोरी-फोरी हुई ही नहीं थी। जिला पुलिस के एक अधिकारी ने एक बातचीत में साफ कुबूल किया कि यह चोरी का मामला ही नहीं था। इस अधिकारी का कहना है कि इस मामले में दोनों की पिटाई और जबर्दस्त पूछताछ के दो दिन बाद ही जांच पुलिस अधिकारियों को साफ पता चल गया था कि यह घरेलू झंझट का मामला था।
इतना ही नहीं, इस अधिकारी ने अपना नाम न खुलासा करने की शर्त पर कुबूला कि उसे मुख्या सचिव की मेमसाहब, उनकी दोनों बहू समेत घर के सभी सदस्यों से पूछताछ की इजाजत दे दीजिए, तो मैं यह मामला चुटकियों में खोल दूंगा। यह बात केवल हवा में ही नहीं की गयी थी, जांच अधिकारियों ने इस मामले में मुख्यसचिव और डीजीपी तक से साफ कह दिया था कि यह चोरी का मामला नहीं है। इन अफसरों ने मामले फर्जी बताया था, पर डेढ़ महीने तक अड़े रहे मुख्यसचिव और डीजीपी अपनी ही बात पर अड़े रहे। बल्कि उन अधिकारियों से कह दिया था कि इस तरह की सिर-पैर की बातें मत करो, वरना तुम्हें घर से दूर पोस्ट करवा दूंगा। इन अधिकारियों को शुरू से ही शक था कि यह चोरी नहीं, घरेलू गोरखधंधा है, जिसके तार मेमसाहब, दोनों बहू, घरेलू दीगर कर्मचारियों आदि पर हैं।
लेकिन मामला जस का तस ही सड़ता ही रहा।

- कुमार सौवीर

- कुमार सौवीर

कोई टिप्पणी नहीं: