शुक्रवार, 15 जनवरी 2010

पूंजीपतियों के मकडजाल में फंस चूका प्रजातंत्र

प्रजातान्त्रिक व्यवस्था को पूंजीपतियों ने किस प्रकार अपने चंगुल में जकड रखा है कि हर राजनितिक विचारधारा इसमें फंसकर चरमराती नजर आती है और हर राजनेता का चरित्र इस हमाम में नंगा नजर आता है।
राजतन्त्र में पूँजीवाद के वर्चस्व के अवगुणों से मुक्ति पाने के लिए ही प्रजातंत्र के सिधांत का जन्म हुआ था। फिर प्रजातंत्र में विभिन्न मार्गो से दाखिल होकर पूंजीपतियों ने प्रजा को ठगना व उसका शोषण प्रारंभ किया और समाजवाद की कई किस्में पैदा हो गयी। काल मार्क्स व लेनिन के साम्यवाद
को विफल करने के उद्देश्य से पूंजीपतियों ने कार्पोरेट समाजवाद की समानंतर स्थापना की और भारत में इसे मजबूती प्रदान की।
आज देश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था में वोट प्रणाली के आगे सारी राजनितिक विचारधाराएँ बेबस होकर दम तोड़ चुकी हैं और पूंजीपतियों पर आश्रित हैं। कांग्रेस, भाजपा, समाजवादी सभी राजनितिक दल किसी न किसी पूंजीपति पर आर्थिक रूप से निर्भर हैं कम्युनिस्ट पार्टी भी इससे अछूती नहीं रही और अभी हाल में सिंगूर में किसानो की भूमि को औने पौने में टाटा को देने का कारनामा अंजाम देने वाले वामपंथियों ने परदे के पीछे गुप चुप तरीके से तमाम पूंजीपतियों से हाथ मिला रखा है तभी तो पश्चिम बंगाल में आमजनता का मोह उससे भंग हो रहा है।
मुलायम सिंह की अमर सिंह को न छोड़ पाने की बेबसी साफ़ दिख राही है जब एक और उनकी पार्टी के पाँव जमीन से उखड चुके हैं परन्तु एक और वह अमर प्रेम से अपने को मुक्त नहीं करा पा रहे हैं मीडिया मैनेजमेंट से लेकर सत्ता में आने के लिए धन बल यह सब किसी विचारधारा से हासिल नहीं किया जा सकता है। इसके लिए अमर सिंह जैसे शातिर दिमाग धन पशु की आवश्यकता होती है जो कभी मुलायम सिंह को सरकार बनाने के लिए गेस्ट हाउस काण्ड कराने में अपने बाहुबल का नमूना पेश करता है तो कभी विपक्षी पार्टियों के विधायक या सांसदों को नोटों को गड्डियां पेश कर लखनऊ से लेकर दिल्ली की सरकार बचाने का कर्णधार बन जाता है।
अब तो प्रजातंत्र की सबसे छोटी इकाई ग्राम पंचायत पर भी पूंजीपतियों का ही कब्ज़ा है। खरीद फरोख्त के सहारे जनप्रतिनिधियों का चुनाव अमल में आता है। हमें बेकार में इस बात का गर्व है कि हम अपना जनप्रतिनिधि चुनते हैं। वास्तव मं पूंजीपति ही हमारे देश का भविष्य देश व विदेश में बैठ कर तय करता है और यह तब तक होता रहेगा जब तक जनहित व देशहित हमारे स्वयं के भीतर नहीं जाएगा और हर व्यक्ति अपने चरित्र व आचरण में इन गुणों का समावेश नहीं करेगा। हमारे लोकतंत्र को प्रदूषित करने वाले अंग्रेजी शासको के स्वयं का प्रजातंत्र हमसे इस मामले में काफी मजबूत है।

मोहम्मद तारिक खान

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