गुरुवार, 14 जनवरी 2010

उन्नति के नाम पर पाश्चात्य सभ्यता की बेशर्मी

फ्रांस में बुर्का पहनने पर प्रतिबन्ध लगा दिए जाने से मुस्लिम समुदाय में काफी रोष है। एक और विकसित राष्ट्रों का यह दवा है कि वह कट्टर पंथी विचारधारा के विरुद्ध है और मानव अधिकार के नाम पर सभी नागरिकों को सामान अधिकार देने के पक्षधर है तो वहीँ इस तरह के नादिरशाही फरमान इन राष्ट्रों जिनका नेतृत्व अमेरिका करता आया है की कथनी व करनी के फर्क को दर्शाता है ।

एक ओर जहाँ पूरे विश्व में इस्लामी कट्टरपंथ की चर्चा है। मीडिया पर (जिस पर इजराइल का अधिपत्य है) बराबर इस्लामी कानूनों की बर्बरता के नमूने पेश किये जाते हैं तो वहीँ दूसरी और स्वयं इंसानियत की गुहार लगाने वाले राष्ट्रों ने धार्मिक सहिष्णुता को दर किनार कर कभी मस्जिदों के मीनारों को लेकर तो कभी बुर्के को लेकर कोहराम मचाना शुरू कर दिया है।
दरहकीकत उनके इस प्रकार के हमले उनकी नस्लभेदी प्रवृत्ति के चलते किये जाते हैं जिसके कारण सदैव काले रंग की प्रजातियों को उनके उत्पीडन का दर्द झेलना पड़ा। चाहे वह अमेरिका हो या कनाडा, चाहे फ़्रांस हो या दक्षिण अफ्रीका या अन्य अफ्रीकी राष्ट्र सभी पर गोरे देशों का आतंक प्रभावी रहा है।
बुर्के पर पाबन्दी लगाने वालों की हमदर्दी मुस्लिम महिलाओं से कदापि नहीं है उनका लक्ष्य इस्लाम धर्म है जिसके ऊपर हमले कभी उन्हें आतंकवादी सिद्ध करने के नाम पर तो कभी उनके दकियानूसी निजाम पर होते रहते हैं। इस प्रकार के हमले इस्लाम के विरुद्ध कर के ऐसे लोगो वास्तव में यूरोप में तेजी से फैलते इस्लाम के असर को रोकने का प्रयास कर रहे हैं क्योंकि आंकड़े बताते हैं कि 9/11 के बाद से यूरोप में इस्लाम ने और तेजी से पैर फैलाए हैं कारण यह है कि ज्यों ज्यों आतंकवाद के नाम पर इस्लाम को बदनाम करने का प्रयास किया गया यूरोपीय लोगो ने इस्लाम को जानने कि कशिश की और फिर उनका मोह इस्लाम कि और बजाय भंग होने के उनकी और बढ़ता ही गया ।
वैसे जहाँ तक मुस्लिम औरतों के बुर्का पहनने कि बात है तो इस्लाम उस बुर्के कि वकालत कहीं नहीं करता जैसा मीडिया पर विशेष तौर पर अफगानिस्तान में 'बुर्के वाली बू बू ' के नाम पर दिखाया जाता है इस्लाम में बुर्के का मतलब हिजाब यानी शर्म है और सतर पोशी की बात कही गयी है जो औरत व मर्द दोनों के लिए है अर्थात ऐसी वेशभूषा जिससे औरत व मर्द शर्म के जामे में रहे। स्वयं इसाई धर्म में चर्चा में रहने वाली ननों कि वेशभूषा क्या बुर्के के अनुरूप नहीं है ? क्या यह विकसित राष्ट्र बेहयाई व बेशर्मी को ही तरक्की मानते हैं ?

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