शुक्रवार, 16 जुलाई 2010

पोस्टमार्टम हाउस में लाशो पर सिक रही है रोटियाँ

बाराबंकी(मो0तारिक खान)।देश में आमतौर पर यह मान्यता है कि जब कोई मर जाता है तो उसके साथ हमदर्दी का सुलूक किया जाता है।वह चाहे जैसे भी कर्मो का मालिक हो परन्तु उसे अच्छे से याद किया जाता है।परन्तु यहाॅ पोस्टमार्टम हाउस में मुर्दे देखते देखते कर्मचारियों का दिल इतना मुर्दा हो गया है कि हमदर्दी तो दूर की बात वह मुर्दो से पैसा कमाने में तनिक भी शर्म नही करते।
 किसी भी अस्वाभाविक मृत्यु पर शव का पोस्टमार्टम पुलिस के निवेदन पर स्वास्थ्य विभाग मौत का कारण जानने के लिए करता है। इसके लिए पोस्टमार्टम हाउस में स्वास्थ्य विभाग की ओर से पूरी व्यवस्था की जाती है। चिकित्सक,फार्मासिस्ट तथा वार्ड ब्वाय के साथ साथ एक स्वीपर यहाॅ स्वास्थ्य विभाग की ओर से तैनात किया जाता है। चिकित्सक स्वीपर की सहायता से पोस्टमार्टम अंजाम देता है और फार्मासिस्ट तथा वार्ड ब्वाय मिलकर पोस्टमार्टम का लेखाजोखा सुव्यवस्थित व सुरक्षित रखता है। स्वीपर के एक पद पर यहाॅ मौजूदा समय में झन्नू व राकेश नाम के दो स्वीपर तैनात हैं। जो शवो को डाक्टर की हिदायत पर चीर फाड़ कर उसके निरीक्षण हुतु प्रस्तुत करते हैं।शव अक्सर कई कई दिन पुराने सड़ी गली हालत में आते हैं जिसमंे इतनी बदबू होती है कि मास्क लगाने के बावजूद वहाॅ खड़ा नही हुआ जा सकता।इसी का लाभ लेते हुए स्वीपर परिजनो से या लावारिस शव होने पर पुलिस से दारु के पाउच के नाम पर प्रति शव 200 रुपये चार्ज करते है।शव चाहे अमीर का हो या गरीब का खर्चे के नाम पर यह वसूली जबरन पुलिस व डाक्टर की मौजूदगी में सरेआम की जाती हैं जिसमें छन्नू जेा विगत दो दशको से भी अधिक समय से यहाॅ तैनात है और जिसे लोग छोटा डाक्टर भी कहते है, परिजनो को विश्वास में लेकर पोस्टमार्टम उनकी मर्जी माफिक करने व डाक्टर केा सेट करने के नाम पर मोटी रकम अक्सर वसूल लेता है।बकौल डाक्टर उन्हे पता ही नही चलता और उनका सौदा बाहर हो जाता है।
 एक और महाशय पोस्टमार्टम हाउस में लाशो को नोचने में लगे रहते है,इनका नाम परदेसी  है,जो अपनी हुलिया से तो फटीचर नजर आते है परन्तु इनकी औसत कमाई प्रति माह पन्द्रह से बीस हजार रुपये है। इनका काम लाश केा उठाकर पोस्टमार्टम हाउस तक पहुॅचाने का है।जिसे वह अपने साइकिल रिक्शे से अंजाम देता हैं।सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार परदेसी की दो दो टैक्सियां भी चल रही है।परदेसी लावारिस हिन्दु लाशों का अंतिम संस्कार पुलिस के अनुरोध पर करता है और प्रति लाश पाॅच सौ रुपये से लेकर सात सौ रुपये में करता है।इसके अतिरिक्त जिला अस्पताल या घटना स्थल से लाश को पोस्टमार्टम तक लाने की मुॅह मांगी कीमत लोग उसे देने को मजबूर रहते हैं तथा बड़े बड़े खुंखार पुलिस वाले भी पैसा कम लेने की खुशामद परदेसी बाबू से करते रहते हैं।
 लाशो पर अपनी रोटियां सेकने वाला तीसरा व्यक्ति एक कफन का कारोबारी गुप्ता नाम का है, जो अपना कारोबार पोस्ट मार्टम हाउस के सामने स्थित सुलभ शौचालय से सुलभता से चलाता है। अवधनामा में कुछ समय पूर्व इस व्यक्ति का कच्चा चिट्ठा खोले जाने के उपरान्त इसकी ठगी में कुछ कमी अब देखी जा रही है और कफन,प्लास्टिक पन्नी का दाम अब इसने गिरा दिया है तथा सर्जिकल दास्ताने जो वह धड़ल्ले से पहले बेचा करता था,अब बेचने से परहेज करता है।
 यही नही मौका पड़ने पर यहाॅ लाशो का भी सौदा हो जाता है।कुछ अर्सा पहले यहाॅ स्वीपर व परदेसी तथा पुलिस गठजोड़ से लखनऊ बाराबंकी मार्ग स्थित एक मेडिकल कालेज द्वारा एक अज्ञात शव का सौदा होता पाया गया था।उस समय जनपद में तेजतर्रार महिला पुलिस अधीक्षिका शशि गिल्डियाल तैनात थी। जिन्हे जब इस नाजायज सौदे की भनक लगी तो उनके पैरो के नीचे से जमीन निकल गयी।तुरन्त उन्होने नगर कोतवाल को वहाॅ पहुचकर मामले को संज्ञान लेने की हिदायत की परन्तु कोतवाल साहब ने अपने आने से पूर्व पोस्टमार्टम हाउस में डियूटी पर मौजूद अपने मातहत सिपाही को सम्भवता फोन द्वारा सूचित कर दिया और लगभग पट चुका सौदा हुशक गया,परन्तु आज भी यह कारोबार चोरी छुप्पे जारी है अर्थात इंसान इंसान को बेच रहा है और लाशो पर अपने भोजन के लिए रोटियां सेंक रहा हैं।

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