सोमवार, 2 अगस्त 2010

मियां जी के दिन बहुरने वाले हैं

बाराबंकी।देर से सही परन्तु लगता है कि अब मियां जी के दिन बहुरने वाले है। केन्द्रीय अल्पसंख्यक मंत्री सलमान खुर्शीद द्वारा एक बयान में कहा गया है कि केन्द्र सरकार शीघ्र ही पिछड़े वर्ग के मुसलमानों को रंगनाथ कमीशन की रिपोर्ट में दी गयी सिफारिशों के आधार पर दस प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा करेगी।
 पहले राजेन्द्र सिंह सच्चर कमेटी ने देश के मुसलमानों की सामाजिक, आर्थिक व शैक्षिक स्थिति की समीक्षा करते हुए अपनी रिपोर्ट कार्ड पेश की,जिसमें बताया गया कि मुसलमानों की हालत वर्तमान में दलितों से भी बदतर हो गयी है। न्याय पालिका में उनकी संख्या घटकर 1.3प्रतिशत ,मात्र 6.5 प्रतिशत मुसलमान स्नातक है और हाईस्कूल पास मुसलमानों की संख्या 7.2 प्रतिशत व सरकारी नौकरियों में इनकी संख्या मात्र 4 प्रतिशत है। यह सब रुदाद उस कौम की है जिसने इस देश में लगभग साढे पाॅच सौ साल हुकुमत की है। बताने की आवश्यकता नही कि मुसलमानों की यह दुर्दशा कैसे हुई?एक विशेष मानसिकता से पोषित वर्ग ने मुसलमानों को जीवन के हर क्षेत्र में इतना पीछे ढकेला कि अंत में उनके पाॅव धरातल पर ही नही रह गये। बल्कि वह गडढे में गिरते चले गये।जब भी कभी मुसलमानों के आरक्षण की बात उठायी गयी तो एक करेन्ट सा लोगो के लग जाता था और तुरन्त यह कहा जाता कि धर्म के आधार पर संविधान में आरक्षण की कोई जगह नही है और बेचारे मुसलमान देखते ही देखते हीन भावना से ग्रसित होकर जिन्दगी की दौर में पिछड़ते चले गये। परिणाम स्वरुप उन्होने यह मन बना लिया कि पढ़ लिखकर क्या किया जाए,नौकरी तो मिलनी नही कोई छोटा मोटा धन्धा कर लिया जाए।मुसलमान का बच्चा प्रारम्भिक शिक्षा लेने मदरसा या अधिक से अधिक सरकारी प्राइमरी स्कूल जाता है और कुरान की पढाई खत्म कर अथवा पाॅचवी जमात पास कर  उसके अभिभावक पढ़ाई से उसे विमुक्त कर देते है और मोटरसाइकिल व मोटर कार  रिपेरिंग शाप,वेल्डिंग मिस्त्री,सिलाई की दुकान,खराद की दुकान, बढ़ईगीरी,दरजोदी कारखाना हैण्डलूम अथवा पावरलूम,चाय व खाने के होटलों इत्यादि पर भेज देते है।उनका उद्देश्य सीधा सीधा यह रहता है कि बच्चा जहाॅ अपना नाम लिखना अथवा हिसाब किताब करना स्कूल या मदरसे में सीख जाए उसको काम पर लगा दिया जाए ताकि चार पैसे हाथ आने लगे।यहाॅ एक बात और ध्यान देने की है कि मुसलमानों के घर बच्चे अधिक पैदा होने का कारण आर्थिक है  न कि धार्मिक।क्योंकि एक परिवार यह सोचकर अधिक पैदा करता है ताकि परिवार मेें आर्थिक आधार पर ज्यादा जननिवेश हो।
 जहाॅ तक संविधान में धर्म के आधार पर आरक्षण के विरोध की बात है तो यह कहीं से भी यह तर्क संगत नही क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 341 जिसमें यह कहा गया है कि दलित समुदाय द्वारा यदि हिन्दू धर्म छोड़कर अन्य कोई धर्म स्वीकार किया जाता है तो उसे मिलने वाली आरक्षण की सुविधा से वह महरुम हो जाएगा।इसमंे बाद में एक के बाद एक संशोधन करते हुए पहले सिख,फिर जैन व बाद में बुद्ध धर्म स्वीकार करने पर दलित व्यक्ति की आरक्षण की सुविधाएं बरकरार रखने की बात की गयी।केवल इसाई धर्म व मुस्लिम धर्म को अछूत दलितों के लिए बना डाला गया।
 अब कांग्रेस के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार बड़ी हिम्मत करके मुस्लिम आरक्षण की बात कर रही है।परन्तु भयभीत है कि ऐसा कोई कदम उसकी तरफ से न उठ जाए कि जिसका लाभ साम्प्रदायिक शक्तियां,मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप उसके ऊपर लगा कर लें। इसी लिए इस काम को अंजाम देने से पूर्व पहले उसने सच्चर कमेटी व बाद में रंगनाथ कमीशन द्वारा देश के नागरिकों से मुस्लिम आरक्षण के लिए गुंजाइश बनवा ली।परन्तु अभी भी एक दिक्कत उनके सामने न्यायालय की है जिसके द्वारा आन्ध्र प्रदेश असेम्बली द्वारा मुस्लिम आरक्षण के लिए जो विधेयक पास किया गया उस पर उच्च न्यायालय ने आपत्ति जड़ दी जिसे केन्द्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में पैरवी करके बाद में खारिज करवा दिया।अल्पसंख्यक मंत्री सलमान  खुर्शीद की ओर से आए बयान से यह बात उभर कर सामने आयी है कि पिछड़े वर्ग को दिया जाने वाला 27 प्रतिशत आरक्षण के भीतर मुसलमानों की आबादी के हिसाब से उनका आरक्षण सुरक्षित कर दिया जाए।जिसकी मांग काफी दिनों से पिछड़े वर्ग के मुसलमान कर रहे थे।इससे सरकार को भी कोई मुसीबत मोल नही लेना पड़ेगी और मुसलमानों का उद्धार भी हो जाएगा।
 परन्तु अकेले पिछड़े वर्ग के आरक्षण से मुसलमानों का  उद्धार नही होने वाला,क्योंकि अकेले पिछड़ी जातियों के सौ प्रतिशत मुसलमान आरक्षण के योग्य नही है।इसी प्रकार सामान्य जातियों के सभी मुसलमान सर्वसम्पन्न नही है।यदि केन्द्र सरकार मुसलमानों केा आरक्षण देकर उन्हे जिन्दगी  की दौड़ में अन्य देशवासियों के साथ खड़ा करना चाहती है,तो सभी वर्ग के पात्रों को आरक्षण का लाभ दिलाए,इसमें क्रीमीलेयर के मुसलमानों को आरक्षण से अलग कर दे।जैसा कि केरला, तमिलनाडु व कर्नाटका में आरक्षण सुविधा मुसलमानेंा केा वहाॅ की सरकारें दे रही हैं।

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