शुक्रवार, 1 मार्च 2013

क्या आगे बढ़ चुके हैं गुजरात के मुसलमान?


राजेश जोशी
बीबीसी संवाददाता
जब पूरा देश टेलीविज़न के पास बैठकर वित्तमंत्री पी चिदंबरम को आम बजट पेश करते हुए देख रहा था, गुजरात के अहमदाबाद शहर में लगभग पाँच सौ मर्द, औरतें और बच्चे अपने मृतकों को याद कर रहे थे.
ये 2002 के दंगा पीड़ित हैं जो अपनी जायदाद और कई परिवार वालों को इन दंगों में खो चुके हैं.
इनको अहमदाबाद में विस्थापित कॉलोनी सिटिज़ंस नगर में बसाया गया है.
उनकी शिकायत है कि दंगों के 11 साल बीत जाने पर भी वो नारकीय स्थितियों में रहने को मजबूर हैं.

'नारकीय जीवन'

मोहम्मद भाई अब्दुल हमीद शेख़ मज़दूरी करके अपना और अपने परिवार का पेट पालते हैं. उनकी यादों में 2002 के दंगों की स्मृतियां एकदम ताज़ा हैं.
उन्होंने बीबीसी से फ़ोन पर बात करते हुए कहा, “हमारे पास स्कूल नहीं है. हम हर दिन मर-मर के गुज़ार रहे हैं. कचरा पेटी हमारे घर के पास है, हम बदबू में दिन गुज़ारते हैं. जब भी साल का ये दिन आता है हमारे सामने (दंगों का) वो ही दृश्य घूम जाता है.”
"हमारे पास स्कूल नहीं है. हम हर दिन मर मर के गुज़ार रहे हैं. कचरा पेटी हमारे घर के पास है, हम बदबू में दिन गुज़ारते हैं. जब भी साल का ये दिन आता है हमारे सामने (दंगों का) वो ही दृश्य घूम जाता है."
मोहम्मद शेख़, दंगापीड़ित
रेशमा बानू नजीम बाई सैयद कहती हैं कि 2002 में उनके पूरे परिवार को ख़त्म कर दिया गया और घर जला डाला.
उन्होंने कहा, “यूँ समझिए कि 2002 में हमारे साथ जो हुआ वो अब भी जारी है. हम ऐसे एरिया में रह रहे हैं, आप आकर देखिए. मुसलमानों को तो ऐसा समझा है कि कचरा टाइप. इतनी ख़राब जगह पर डाले हैं. जहाँ जानवर भी रहना पसंद न करे वहाँ हमारी क़ौम रह रही है.”
लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार हमेशा से मुसलमानों के साथ भेदभाव किए जाने के आरोपों का खंडन करती है.
मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी इन आरोपों का भी खंडन करते रहे हैं कि दंगों के दौरान उन्होंने दंगाइयों के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की और उन्हें बढ़ावा दिया.
दंगापीड़ितों की ओर से सुप्रीम कोर्ट तक क़ानूनी लड़ाई लड़ने वाली तीस्ता सीतलवाड़ भी इन विरोध प्रदर्शनों में शामिल थीं.

ज़िम्मेदारी

"हम मानते हैं कि वो 2002 के नरसंहार के लिए ज़िम्मेदार थे. जो इंसान एक हैंडपंप लग जाता है गुजरात में उसका क्रे़डिट ले सकता है, उसे ढाई हज़ार इंसानों के क़त्लेआम और 18,000 लोगों के बेघर होने की ज़िम्मेदारी उन्हें लेनी पड़ेगी."
तीस्ता सीतलवाड़, मानवाधिकार कार्यकर्ता
वहीं से फ़ोन पर उन्होंने बीबीसी से बात की और कहा कि नरेंद्र मोदी को ज़िम्मेदारी लेनी ही होगी.
उन्होंने कहा, “हम मानते हैं कि वो 2002 के नरसंहार के लिए ज़िम्मेदार थे. जो इनसान एक हैंडपंप लग जाता है गुजरात में, उसका क्रे़डिट ले सकता है, उसे ढाई हज़ार इनसानों के क़त्लेआम और 18,000 लोगों के बेघर होने की ज़िम्मेदारी लेनी पड़ेगी.”
इन मुद्दों पर बात करने के लिए गुजरात सरकार के प्रवक्ता सौरभ दलाल से संपर्क करने की सभी कोशिशें नाकाम रहीं.
गुजरात दंगों पर चर्चित डॉक्यूमेंटरी फ़िल्म ‘फ़ाइनल सॉल्यूशंस’ बना चुके राकेश शर्मा कहते हैं कि नरेंद्र मोदी अपनी छवि सुधारने की कोशिश कर रहे हैं.
उन्होंने कहा, “एक बार सुप्रीम कोर्ट ने नरेंद्र मोदी को नीरो की उपाधि दी थी, कि गुजरात जल रहा था और वो चुपचाप बैठकर तमाशा देखते रहे. उस नीरो के विकास पुरुष और अब प्रधानमंत्री के पद की ओर हो रहे सफ़र का आख़िरी अध्याय हम देख रहे हैं.”
राकेश शर्मा पिछले छह साल से इस फ़िल्म का दूसरा हिस्सा बना रहे हैं. इस सिलसिले में वो उन्हीं दंगापीड़ितों से जाकर मिले जिनसे उन्होंने दंगों के एकदम बाद बात की थी.

- बीबीसी

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