रविवार, 10 मार्च 2013

अमरीका और तालिबान में साठगांठ

करज़ई: अमरीका और तालिबान में साठगांठ

बम धमाका
बम धमाके में कम से कम नौ लोग मारे गए थे.
अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करज़ई ने अमरीका और तालिबान के बीच साठगांठ का आरोप लगाया है. उन्होंने कहा है कि ये दोनों मिल कर लोगों को डरा रहे हैं ताकि 2014 के बाद भी विदेश सेनाएं अफ़ग़ानिस्तान में रह सकें.
करज़ई ने शनिवार को हुए आत्मघाती हमले में भी अमरीका और तालिबान का हाथ बताया है. हालांकि तालिबान ने कहा है कि अमरीका से उसका कोई लेना देना नहीं है.
राष्ट्रपति करज़ई ने अपने बयान से न सिर्फ़ कई तरह की अटकलों को जन्म दिया है बल्कि अफ़ग़ानिस्तान के पहले दौरे पर गए अमरीका के नए रक्षा मंत्री चक हेगेल के साथ प्रस्तावित प्रेंस कांफ़्रेंस को भी रद्द कर दिया.
राष्ट्रपति के एक वरिष्ठ सहयोगी ने बीबीसी को बताया कि प्रेस कांफ्रे़स रद्द करने की वजह आम लोगों की मौतों, बगराम जेल का नियंत्रण सौंपने और वरदक प्रांत में विशेष अमरीकी बलों की कार्रवाई पर बढ़ता हुआ तनाव है. लेकिन अमरीकी अधिकारी कह रहे हैं कि ऐसा सुरक्षा कारणों से किया गया है, न कि करज़ई के हालिया बयान को देखते हुए.
"अमरीका कह रहा है कि तालिबान उनका दुश्मन नहीं है और वे तालिबान ने नहीं लड़ रहे हैं. और दूसरी तरफ़ वो तालिबान के नाम पर लोगों का शोषण कर रहे हैं. तालिबान की अमरीका से रोज़ाना बात होती है और साथ ही वो काबुल और खोस्त में बम भी बरसा रहे हैं. उनका दावा है कि वो अमरीका को अपनी ताकत दिखा रहे हैं, पर वो ऐसा नहीं कर रहे हैं."
हामिद करज़ई, अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति

दरअसल करज़ई ने दो टूक कहा है कि अमरीका और तालिबान लोगों में भय के बीज बो रहे हैं ताकि उन्हें भरोसा हो जाए कि विदेश सेनाओं के अफ़ग़ानिस्तान छोड़ने के बाद वहां हिंसा बढ़ेगी.

'डराने की कोशिश'

करज़ई का कहना था, ''अमरीका कह रहा है कि तालिबान उनका दुश्मन नहीं है और वे तालिबान ने नहीं लड़ रहे हैं. और दूसरी तरफ़ वो तालिबान के नाम पर लोगों का शोषण कर रहे हैं. तालिबान की अमरीका से रोज़ाना बात होती है और साथ ही वो काबुल और खोस्त में बम भी बरसा रहे हैं. उनका दावा है कि वो अमरीका को अपनी ताकत दिखा रहे हैं, पर वो ऐसा नहीं कर रहे हैं.''
अफ़ग़ानिस्तान में नैटो के नेतृत्व वाली विदेशी सेनाओं को अगले साल 2014 में वापस चले जाना है.
करज़ई ने कहा कि शनिवार को तालिबान के आत्मघाती हमले का मक़सद भी यही था कि विदेशी सेनाएं 2014 के बाद अफ़ग़ानिस्तान में रह सकें.
उन्होंने कहा कि इस हमले से विदेशी हितों को साधा गया ताकि अफ़ग़ानिस्तान में विदेशियों की मौजूदगी को लंबा खींचा जाए.
करज़ई के इस बयान पर अमरीका और नैटो बलों के कमांडर जनरल जोसेफ़ डुनफ़ोर्ड का कहना है कि उन्होंने बीते 12 सालों में बड़ी मेहनत से जंग लड़ी है, और इस दौरान काफ़ी ख़ून बहाया है, क्या ये सब इसलिए किया गया है कि हिंसा और अस्थिरता का हम फ़ायदा उठाएं.
काबुल में बीबीसी संवाददाता क्विंटन समरविले का कहना है कि राष्ट्रपति करज़ई और अमरीका के संबंध बेहद ख़राब चल रहे हैं और करज़ई इस बात से नाराज़ हैं कि अमरीका ने अपने नियंत्रण वाली बगराम जेल के क़ैदियों को अफ़ग़ान जेल में क्यों नहीं भेजा.
अफ़ग़ानिस्तान में इस वक़्त अमरीका के 66 हज़ार फ़ौजी तैनात हैं और अगले साल की शुरुआत में ये आंकड़ा घट कर 34 हज़ार रह जाएगा. 2014 के बाद अन्य पश्चिमी देशों के कितने सैनिक अफ़ग़ानिस्तान में रहेंगे, ये अभी तय नहीं है.
उधर तालिबान ने करज़ई के इस आरोप से इनकार किया है कि वो अमरीका से रोज़ाना बात कर रहा है.

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