शुक्रवार, 1 जनवरी 2010

ब्लू मून के साए में नए साल की आमद क्या गुल खिलाएगी ?

बाराबंकी। साल 2009 कल मध्य रात्रि रुखसत हो गया और चंद्रग्रहण के साए में नए साल 2010 की आमद हुई। ज्योतिषशास्त्री इसे आम जनता के लिए सुखदायी और दूसरी ओर भ्रष्ट व जालिम हुक्मरानों के लिए अराम बता रहे हैं । खुदा करे ऐसा ही हो क्योंकि बीते वर्ष संसार के कई अविकसित व विकासशील देशों पर भ्रष्ट व जालिम हुक्मरानों ने न केवल अनेको अत्याचार किये बल्कि उनके लिए जीना तक मोहाल कर दिया।

साल 2009 की आमद से एक माह चार दिन पूर्व 26 नवम्बर 2008 को देश की आतंरिक सुरक्षा व उसकी अस्मिता पर एक गहरा अघात आतंकी घटना अंजाम दे कर देश के बाहर शरारत का रिमोट लिए बैठे मित्र के भेष में शत्रुओं ने पूरे राष्ट्र को झिंझोड़ कर रख दिया। गिनती के आतंकियों ने कई दिनों तक हमारी सुरक्षा व्यवस्था को खूब छकाया और कई जांबाज पुलिस व सेना के अधिकारियों को अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी।
उसके बाद क्या हुआ या क्या हो रहा है यह सब जनता के सामने है । हेमंत करकरे, विजय सालसकर व अशोक काम्टे जैसे स्वच्छ छवि के तेज तर्रार पुलिस अफसरों के परिवार वाले भी इस बात से संतुष्ट नहीं कि उनके चहेते शहीदों की मृत्यु के सिलसिले में जो जांच की जा रही है वह पारदर्शी है । बुलेट प्रूफ जैकेट की खरीद की फाइल पुलिस रिकॉर्ड से लापता है। शहीद हेमंत करकरे के जिस्म से पोस्मार्टम के समय उतारी गयी बुलेट प्रूफ जैकेट भी आश्चर्यजनक तौर पर पहले लापता रही फिर मीडिया के दबाव में उसे कूड़े के ढेर में पड़ा होने की बात कह कर सामने लाया गया जबकि पोस्मार्टम के बाद लाश के जिस्म पर मौजूद कपड़ों को सील कर के पुलिस के हवाले केस प्रापर्टी के तौर पर किया जाता है। यह सामान्य प्रक्रिया भी शहीदों के केस में न अपनाया जाना क्या किसी आतंकवादी संगठन के दबाव में किया गया या घटना में कहीं मुकामी लोगों की कलई न खुल जाए इस बात को छुपाने का प्रयास किया जा रहा है।
जो भी हो देश के नागरिको का देश की सुरक्षा व्यवस्था से यदि विश्वास ख़त्म नहीं डगमगा तो अवश्य गया होगा। एक ओर हमारे प्रजातंत्र में समाज की सेवा का दम भरने वाले नेता अपने राजसी ठाटबाट पर प्रतिवर्ष कई अरब रुपये संसद में डकार जाते हैं कई अरब रुपये देश से लेकर विदेशों की हवाई यात्रा में खर्च कर रहे हैं तो वहीँ गरीब एक एक कौर के लिए तरस रहा है। ऊपर से सार्वजानिक स्थानों पर आतंकी घटनाओ का भय साल भर जनता को सताता रहा।
इन सबके बीच विदेशों में बैठे साम्राज्यवादी पूंजीपति हमारे देश में सौन्दर्य प्रसाधन व अन्य चमकदमक वाले विदेशी साजो सामान मुहैया कर के गरीबी की ओर से जनता का ध्यान हटाने की कवायद में जुटे रहे। स्तिथि यह है कि आज खाद्य पदार्थों के दाम आसमान पर पहुँच रहे हैं जबकि मोबाइल व अन्य इलेक्ट्रोनिक सामानों के दाम निचे गिर रहे हैं। लगभग 50 करोड़ व्यक्तियों के हाथ में आज मोबाइल है मगर बिटिया के हाथ पीले करने के लिए पैसे का अभाव। इतनी महंगाई के बावजूद कोई प्रबल आवाज न राजनीतिक पार्टियों के मुंह से निकल रही है और न जनता सड़कों पर इस मुद्दे पर निकलने को तैयार । पहले 1 रुपये बस का किराया बढ़ने या प्याज महंगी होने पर सरकारें हिल कर बदल जाती थी आज महंगाई पर सियासत हो रही है। जनता के बाहर न निकलने का मुख्य कारण यह है कि आज रोजगार के नए नए संसाधन गैर सरकारी स्तर पर पैदा हो चले हैं। भ्रष्टाचार व अनैतिक कार्यों की बढ़ोत्तरी देश में जोर पकड़ रही है । वायदा कारोबार व सेंसेक्स के नाम पर सट्टेबाजी यानी जुआ सरकार खुद खिलवा रही है। आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत जमाखोरी पर आधारित कारोबार है उसके विरुद्ध कानून खामोश है।

मो॰ तारिक खान

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