बुधवार, 13 जनवरी 2010

स्वाइन फ्लू की दहशत, दवा कंपनियों का खेल

यूरोप की एक समाचार एजेंसी के हवाले से खबर आई है कि पूरे संसार में स्वाइन फ्लू के नाम पर दहशत फैलाने का काम दवा बनाने वाली विश्व की कुछ बड़ी कंपनियों ने अंजाम दी थी इसके लिए उन्होंने मीडिया का भरपूर सहारा लिया था।
वर्ष 2008 के प्रारम्भ में स्वाइन फ्लू नाम की एक अनजान बीमारी जिससे संसार का हर व्यक्ति अनभिज्ञ था, का नाम मीडिया में प्रमुखता से चर्चाओं में आया।
बीमारी का आतंक लोगों के सर चढ़ कर बोलने लगा । पहले तो यह खबर आई कि इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है और लक्षण आम सर्दी जुखाम से मिलते जुलते बताये गए। केवल इससे बचाव की दीक्षा चिकित्साशास्त्र से जुड़े वैज्ञानिको ने देनी प्रारंभ की और स्वाइन फ्लू के फैलने का कारण एक वाइरस को बताया गया जो गन्दगी से फैलता है।
देश में भी स्वाइन फ्लू की दहशत का प्रकोप बड़े स्तर पर रहा नर्सिंग होमो व प्राइवेट क्लीनिकों की खूब चांदी रही। जरा सा बुखार खांसी में लोग डाक्टरों के पास दौड़ने लगते थे। टामी फ्लू के नाम पर एक महंगी दवा की बिक्री खूब रही। दवा की कमी के नाम पर ब्लैक में इसे बेचा गया और दवा कंपनियों के पौ बारह रहे
भुक्त भोगी रही बेचारी जनता जिसका शोषण हर प्रकार से होता है। इससे पूर्व 2005 में सार्स नाम की एक गुमनाम बीमारी का नाम प्रकाश में आया। कारण मुर्गियों में पाया जाने वाला वाइरस बताया गया। पूरे दक्षिण एशिया, पश्चिम एशिया व उपमहाद्वीप में मुर्गियों की हत्या कर दी गयी। देश में मुर्गी पालन व्यवसाय प्रभावित हुआ बड़े फर्मो को सरकार की और से आर्थिक सहायता मिल गयी परन्तु छोटे फार्म हाउस दिवालिया नतीजे में मुर्गे का मांस की जो महंगाई बढ़ी तो आज तक वह कायम है साथ में अंडा भी महंगा हो गया। गरीब हर दशा में शोषित होता है कभी उपभोक्ता के रूप में तो कभी छोटे व्यवसाई के रूप में तो कभी बीमार के रूप में और वारे न्यारे धन्ना सेठों के होते हैं।

मोहम्मद तारिक खान

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