मंगलवार, 2 फ़रवरी 2010

पूंजीवादी एवं सम्प्रदायिक शक्तियों की साजिश का शिकार मुलायम



वरिष्ठ समाजवादी विचारक व अन्य सपा प्रवक्ता मोहन सिंह ने अमर सिंह के पार्टी से निष्कासन पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि वह पार्टी में पूंजीवादियों एवं सम्प्रदायिक शक्तियों के एजेन्ट के रूप में दाखिल हुए थे और पार्टी को अपार क्षति पहुंचाकर गए अब हम लोग पार्टी के अन्दर अन्य कचरे को साफ करने का काम करने और पार्टी का पुर्नगठन समान विचार धारा के लोगों को जोड़कर करेंगे।

मोहन सिंह ने बीमारी की सही डायग्नोसिस की है। यह बात बिलकुल सही है कि समाजवादी पार्टी को 90 के दशक के प्रारम्भ में उस समय प्रदेश में उमड़ी थी। जिस समय प्रदेश राम लहर से ओतप्रोत था और बाबरी मस्जिद प्रकरण से मुस्लिम वर्ग कांग्रेस से नाराज था, सो वोटों का ध्रुवीकरण दो ओर हुआ। सपा की ओर मुस्लिम वोट को भाजपा की ओर हिन्दू वोटों का पलायन हो गया। पिछड़ा वर्ग का भी अधिकांश वोट सपा के पाले में रहा। कल्याण सिंह के भाजपा में रहने के कारण लोध बिरादरी का वोट भाजपा को चला गया। इस प्रकार प्रदेश जातिवाद व संकीर्ण धार्मिक विचारधारा के राजनीतिक दलदल में जा फंसा।
फिर बाबरी मस्जिद कांड व उसके बाद हुए दंगों ने मुलायम सिंह की ओर मुसलमानों को एक दम मोड़ दिया, यादव, कुर्मी वोट उनके पास पहले ही था सो उन्होंने नई उभर रही पार्टी बहुजन समाज के नेता कांशीराम से गठबंधन कर 1993 के विधान सभा चुनावों में भाजपा के हांथों से सत्ता छीन ली और दलित पिछड़ा, मुस्लिम समाज का एक मजबूत गठजोड़ बन गया। समाज के यहां वह तबके थे जो हमेशा से सताए हुए और पक्षपात के शिकार रहे।
विदित रहे कि वह समाज था जब गांधी नेहरू की आर्थिक विचार धाराओं को किनारे लगाते हुए नरसिंह राव की कांग्रेस सरकार में वित्त मंत्री रहे मनमोहन सिंह आर्थिक उदारीकरण की मंगा बहा रहे थे। परिणामस्वरूप किसानों, छोटे व्यापारियों, लघु उद्योगों के अस्तित्व का प्रश्न उठ खड़ा हुआ था। ऐसे में तमाम शोषित समाज का एक राजनीतिक झंडे़ के नीचे आ जाना पूंजीपतियों व हिन्दू कट्टरपंथियों को जबरदस्त तौर पर अखरने लगा। सो उन्होंने एक साजिश कर के पहले मुलायम को माया व काशीराम से अलग किया साथ ही साम्राज्यवादी विचारों के अमर सिंह को सपा में दाखिल करा कर समाजवादी विचारधारा व धर्म निरपेक्ष छवि के बैनर को भी मुलायम सिंह के ऊपर से उतार फेंका। एक ओर जहां मुलायम सिंह किसानों के हितों को ताक पर रखकर उद्योगपतियों के हाथों सस्ते दामों में किसानों की भमि एवं उनकी उपज का सौदा करने लगे तो वहीं दूसरी ओर पहले साक्षी महाराज और बाद में कल्याण सिंह के साथ हांथ मिलाकर अपनी धर्मनिरपेक्षता की छवि पर भी सवालियां निशान लगा बैठे फिर अमरीका के साथ परमाणु करार के मुद्दे पर सामा्रज्यवादियों के पाले में खड़े होकर अपने पुराने मित्र वामपंथियों को भी नाराज कर बैठे। रही सही कसर उनके चरित्र पर भी उंगलियां उठने से पूरी हो गयी जो बॉलीवुड के ग्लैमर के कारण उन पर उठीं।
मुलायम सिंह को यह सब दुख अपनी राजनीतिक महात्वाकांक्षाओं के कारण झेलने पड़े। सपने देखने अच्छी बात है परन्तु ऐसे सपने जिसमें उसकी जड़े खोखली हो जाए वह व्यक्ति को विनाश की ओर ले जाते है। मुलायम ने भी वही गलती की विधान सभा से लेकर लोकसभा तक जब उन्हे सफलता मिली और प्रदेश के बाद देश में भी गठबंधन सरकार बनने की बारी आयी तो मुलायम को यह आभास अमर सिंह ने करवाया कि वह प्रधानमंत्री की कुर्सी पहुंच सकते है। इसी के चलते मुलायम अमर के झांसे में आए और अपनी पार्टी की दुर्गत बनवा बैठे। उनका राजनीतिक ग्राफ गिरना शुरू हो गया और पार्टी का बेस वोट माने लाने वाला तब्का मुलायम भी उनसे नाराज होकर बसपा व कांग्रेस की ओर पेंगे बढ़ाने लगा।
सपा के नाराज मुस्लिम, लीडर आजम खां ने भी इस ओर इशारा करते हुए कहा कि पार्टी की अपने मतदाताओं में विश्वनीयता अपनी विश्वनीयता खो चुकी है। विशेष तौर पर मुसलमानों में।
अब देखना यह है कि मोहन सिंह के साथ मिलकर मुलायम सिंह के साथ मिलकर मुलायम सिंह समाजवाद की अपनी पुरानी डकर पर किस अंदाज में लौटते है। सब कुछ निर्भर करेगा विरोधी दलों की स्थित व रणनीत पर यदि कांग्रेस ने मुस्लिम आरक्षण का कार्ड खेल दिया गया प्रदेश में अपने घर को सुव्यवस्थत कर लिया तो फिर सपा का मुसलमानों को अपने पास रोक कर रखना एक कठिन काम होगा। यदि कांग्रेस या बसपा ने अमर सिंह को साथ ले लिया तो मुलायम फिर अपने को मुलायम की छतरी के नीचे ही सुरक्षित समझेंगे।

तारिक खान

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