सोमवार, 8 फ़रवरी 2010

चाणक्य के देश में राजधर्म की हालत

समाजवादी पार्टी से अमर सिंह के जुदा हो जाने पर राजनीतिक पण्डित यह कहते नहीं थक रहे कि अब मुलायम सिंह अपने दल के खर्चो की व्यवस्था कहां से करेंगे? और सत्ता के लिए अब आवश्यकता सा बन गया छंद फंद वह किस के बूते करेंगे ?
अजीब बात है एक ओर राजनीत के गिरते स्तर पर प्रतिदित देश के विभिन्न अंचलों में आडिटोरियम व सभागारों में परिचर्चाए आयोजित की जाती है पुराने अवकाश राजनीतिज्ञ, समाजसेवी, साहित्कार, राजीतिक आलोचक लम्बे चौड़े भाषण देकर देश की राजनीतिक दशा एवं उसकी भटकती दिशा पर अपनी चिन्ता व्यक्त करते हैं तो वहीं दूसरी ओर अमर सिंह जैसे व्यक्ति की राजनीतिक निपुणता की वकालत भी करते लोग दिखाई पड़ते है।
और वह भी उस सरजमीन पर जहां महान चाणक्य की कूटनीतियां जन्मी और जहां महासंग्राम के दौरान युद्ध के भी आदर्श थे जहां राजनीत में मानवीय संवेदनाओं व धार्मिक मूल्यों को समायोजित कर राष्ट्रधर्म को प्रधानता दी जाती थी।
परन्तु आज पश्चिमी देशों व उनकी पाश्चात्य संस्कृति का लबादा हमने अपने ऊपर इतना ओढ लिया है कि Every Thing Is Right In Love Out War वाले फार्मूलें पर हम चलने लग पड़े है। अब राजनीत का मुख्य लक्ष्य सत्ता पार्टी तक ही सीमित रह गया है। लगभग हर पार्टी अपनी नीतियों का बखान चुनाव के समय अपने घोषणा पत्र में तो करती है परन्तु सत्ता प्राप्ति के उपरान्त उसकी नीति केवल घनोपार्जन बन जाती है यही हाल जन प्रतिनिधियों का भी रहता है जो चुनाव लड़ते समय तो जनता को सुनहरे सपने दिखलाते है परन्तु जीत जाने के पश्चात दलालों को और अपने व अपने परिवारों का हित साधने में जुट जाते है।
समाजवाद का सब पढने वाले मुलायम सिंह भी इसी कारण अमर प्रेम में मुबतिला हुए और धरतीपुत्र से जी बन गए और अमर सिंह उनके कार्पोरेट समाजवाद के मैनेजर जो उन्हे सदैव प्रधानमंत्री की कुर्सी पाने के सपने दिखाते रहते। नतीजा यह हुआ कि मुलायम सिंह आम जनता से दूर होते चले गये और देश के उद्योगपतियों और फिल्मी हस्तियों के मरीब। वह कहते है कि रोग मनुष्य के शरीर को धीरे धीरे धुन की तरह चारता रहता है। अमर सिंह प्रेम का रोग मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी को धन की तरह चर गया। उनकी समाजवादी नेता की तो धज्जियां उड गयी। और वह साम्राज्यवाद व परिवार व परिवारवाद की डगर पर चल पड़े। उनकी व उनके परिषद की आय से अधिक सम्पत्तियों पर प्रश्न चिन्ह जब अधिक लगने लगते लगे तो मामला सर्वोच्च न्यायलय की दहलीज तक जा पहुंचा।
और देखते ही देखते नेता जी जो सफलता की सीढियां चढ कर देश के सर्वोच्च राजीतिक पद पर पहुंचना चाहते थे अपने घर में ही घिर गए उनकी बहु की रार्मनाक शिकस्त हुई। पार्टी में फूट पड़ने लगी परिवार भी दो हिस्सों में बंट गया।
इन सबके बीच आम आदमी जो मुलायम सिंह ने अपने हितों की आशाएं बांधता था उनसे कटकर निराशा में डूबता चला गया। एक तरफ से जब आफत सिर पर आ गयी तो मुलायम सिंह अमर प्रेम की खुमारी से लागे और अमर सिंह को बाहर का रास्ता दिखाने के लिए अपने परिवार के एक वरिष्ठ सपा लीडर। के राम गोपाल यादव को अमर विरोध स्वयं के साथ मैदान में उतारा और अपनी अपेक्षा के अनुरूप अमर सिंह को उत्तेजित कर इस्तीफे पर मजबूर कर दिया। फिर उचित अवसर देख अमर सिंह व उनकी सहयोगों जयाप्रदा को बाहर का रास्ता दिखा दिया साथ ही चार विधायकों को भी सजा दे दी।
मुलायम अब वहां खडे है जहां से उन्होने 1989 में पार्टी के सफर का आगाज किया था ज्ञानेश्वर मिश्रा व राम सरतदास जैसे सरीखे समाजवाद के दिग्गज तो दुनिया में है नहीं सो मोहन सिंह को उन्होने पार्टी का सारथी बताकर अपने मतदाताओं को यह आभास कराने का प्रया किया है कि अब वह पुनः धरती पर आ रहे है और उनके हितों की चिन्ता ही अब उनका लक्ष्य रह गया है।
सुब का मूला मुलायम अगर धर गायस आ गया है तो उनका उत्साह वर्धत करना चाहिए क्योंकि बकोल मोहन सिंह वर्तमान में बढती मंहगाई और उसके बोझ तले दबते जा रहे आम आदमी को इस समय समाजवादी विचार धारा का ही सहारा है क्योंकि साम्राज्यवादी विरोधी और गरीबों की चिन्ता करने वाले इंदिरा गांधी, नेहरू परिवार को भी अब अंकल सेम का नशा सवार है। भगवा ब्रिगेड को तो रसद ही सदैव साम्राजियों से मिलती रही अब बचें ग्राम पंछी व समाजवादी जो अगर नेक नीयत रहे तो जनता के कुहआंर घुल सकते है।

मोहम्मद तारिक खान

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