बाराबंकी(मो0तारिक खाॅ)।किसी जमाने में समाजवादी पार्टी का किला कहे जाने वाले जनपद बाराबंकी में पार्टी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हैै।तीन बार के विधायक व चार बार के सांसद राम सागर रावत ने भी पार्टी के भीतर चल रहे द्वन्द से रुष्ट होकर पार्टी छोेड़ने का निर्णय ले लिया।समाज वादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव को आज भेजे गए एक पत्र में उन्होने विधान सभा क्षेत्र हैदरगढ से पार्टी अध्यक्ष दुख हरन यादव को हटाए जाने के विरोध में दुखी मन से पार्टी छोड़ने की बात कही है।
वर्ष 1989 में समाजवादी पार्टी के गठन के समय से पार्टी के सबसे वफादार सिपाही राम सागर रावत जनपद में दलित बिरादरी के पासी समाज के सबसे बड़े नेता माने जाते है।यद्यपि विगत वर्ष 2009 के आम लोक सभा चुनाव में वह कांग्रेस सांसद पी0एल0पुनिया के हाथों शिकस्त खाकर दूसरे स्थान पर रहे थे,परन्तु पार्टी के पुराने दिग्गज नेता बेनी प्रसाद वर्मा तथा हैदरगढ विधायक अरविन्द सिंह गोप के विरोध के बावजूद उन्होने पार्टी के लिए न केवल सम्मानजनक स्कोर खड़ा किया था बल्कि सत्ताधारी दल के सांसद रहे कमला प्रसाद रावत को तीसरे स्थान पर धकेल दिया था।
राम सागर रावत पहली बार सांसद वर्ष 1989 में जनता दल के टिकट पर बने और उन्होने कांग्रेस के प्रत्याशी राम किंकर रावत को 64117 वोटो से पराजित किया।फिर वर्ष 1991 में वह पुनः सांसद जनता पार्टी के टिकट पर बने और राम मन्दिर की पूरे देश में चल रही बयार का कड़ा मुकाबला करते हुए उन्होने भाजपा प्रत्याशी कपिल देव कुशमेश को 3798 वोटो से पराजित कर धर्म निरपेक्षता के परचम को बुलन्द किया।राम सागर रावत वर्ष 1996 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर फिर सांसद बने और भाजपा प्रत्याशी कपिल देव कुशमेश को 14722 मतों से पराजित किया।वर्ष 1998 में चुनाव वह हार गए और भाजपा ने जनपद में पहली बार अपने फतेह का झण्डा गाड़ा।परन्तु एक वर्ष पश्चात हुए चुनाव में उन्हे पुनः जनता ने अपार बहुमत देकर दिल्ली भेजा।उसके बाद से लगातार दो बार वह चुनाव जीतने में विफल रहे।
राम सागर रावत ने पार्टी के हितो को सदैव अपने व्यक्तिगत हितो से ऊपर रखा और इसीलिए राजनीति में चुनाव हारने के बावजूद भी पार्टी में कभी भी उनके कद पर कोई आॅच नही आयी।प्रदेश में तीन बार सत्ता में पार्टी के रहने के बावजूद राम सागर ने कभी भी अपने या अपने परिवार के लिए कोई चमकदार पद नही लिया।पार्टी दिग्गज नेता बेनी प्रसाद वर्मा के नाराज होकर पार्टी से पलायन करने तथा जनपद के वयोवृद्ध नेता पूर्व सांसद अनन्त राम जायसवाल के अस्वस्थ होने के कारण वही एक ऐसे नेता पार्टी में थे,जिनकी जमीनी पकड़ थी जो आज भी बरकरार है।
परन्तु विगत वर्ष 2009 के लोक सभा चुनाव में जिस प्रकार उनके अपने कुछ विधायकेां जिनकी अगुवायी ठाकुर अमर सिंह के सबसे निकटतम नेता अरविन्द सिंह गोप कर रहे थे,के द्वारा भितरघात की गयी वह उस समय से कुण्ठाग्रस्त थे।चुनाव वह उससे पहले कई बार हारे थे परन्तु इस हार ने उनका मनोबल तोड़ डाला था और दिल भी छलनी कर दिया था।अमर सिंह के पार्टी से विदा होने के पश्चात राम सागर रावत को यह आशा थी कि जनपद में हालात करवट लेंगे और पार्टी की कमान जो उनसे तजुर्बे में बहुत छोटे अरविन्द सिंह गोप के पास थी पुनः उनके पास लौटेगी।इसी कारण इधर पार्टी के कई कार्यक्रमो में राम सागर रावत ने बढचढ़कर नए जोश के साथ भाग लिया था और मुस्लिम यादव व पासी समाज के पुराने गठजोड़ को मजबूती देने का ताना बाना बुनना उन्होने प्रारम्भ कर दिया था।परन्तु समय गुजरने के पश्चात जब पार्टी के प्रदेश नेतृत्व ने उनके स्थान पर अरविन्द सिंह गोप को वरीयता देने का क्रम जारी रखा तो उनके मन में असंतोष भरना स्वाभाविक था।इसी बीच प्रदेश नेतृत्व की ओर से हैदरगढ विधान सभा से पार्टी अध्यक्ष दुख हरन यादव को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।जिसका विरोध राम सागर रावत ने यह कहकर किया कि दुख हरन यादव समाजवादी पार्टी के पुरोधा राम सेवक यादव के जमाने के कार्यकर्ता है और उनकी पार्टी के लिए काफी सेवायें है तथा पार्टी नेताओं के साथ उन्होने जेल में कठोर यातनायें भी झेली है,ऐसे व्यक्ति के साथ बगैर कारण बताए यह सलुक असहनीय हैैैैैैैैै तथा पार्टी से जुड़े कार्यकर्ताओं का नैतिक पतन है।
अब देखना यह है कि राम सागर रावत का त्याग पत्र पर पार्टी हाईकमान क्या निर्णय लेता है?यदि राम सागर रावत के दबाव में शीर्ष नेतृत्व झुकता है तो विरोधी खेमे से भी आवाज उठेगी।यदि पार्टी हाईकमान राम सागर रावत को बूढ़ा व कमजोर समझकर नजरअन्दाज कर देता है तो और लोगो के भी त्याग पत्र ऐसी परिस्थितियों में आ सकते है और ऐसी स्थिति में और कहीं हो न हो परन्तु समाजवादियों के गढ में ही उनकी हालत पतली अवश्य नजर आएगी।
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