शुक्रवार, 29 जुलाई 2011

क्या अमरीका धोखे में जी रहा है?


अमरीकी ध्वज

अमरीका की ऋण समस्या सिर्फ़ सरकारी खर्च से ही संबंधित नहीं है, बल्कि इसके कई पहलु हैं.

ये कहानी है कर्ज़, भ्रांति और एक संभावित विनाश की. अमरीका 14 खरब डॉलर के ऋण में डूबा हुआ है, लेकिन उससे बाहर निकलने का कोई रास्ता उसे नज़र नहीं आ रहा है.

ये आंकड़ा मेरी समझ से परे है और अविश्वसनीय भी, क्योंकि अमरीका पर कर्ज़ 40,000 डॉलर प्रति सेकेंड की औसत से बढ़ रहा है.

अफ़ग़ानिस्तान से अपनी सेना को बाहर निकालने से थोड़ी मदद तो मिलेगी, लेकिन कुछ ख़ास नहीं. अमरीका के लिए ऋण की ये समस्या सिर्फ़ खर्च से ही संबंधित नहीं है, बल्कि इसके कई पहलू हैं.

अर्थशास्त्री और कोलंबिया यूनिवर्सिटी अर्थ इंस्टिट्यूट के निदेशक जैफ़री सैश ऋण के मुद्दे पर कड़ा रुख़ अपनाते हुए कहते हैं, “इस आंकड़े को देख कर मैं काफ़ी चिंतित हूं. इसे नियंत्रण में लाना बेहद ज़रूरी है. हम जितना इंतज़ार करेंगें, उतना ही हम कमज़ोर होते चले जाएंगें.”

काउंसिल ऑफ़ फ़ॉरेन रिलेशन के रिचर्ड हास भी इस बात से इत्तेफ़ाक रखते हैं और कहते हैं कि सभी विकसित लोकतांत्रिक देशों में ये समस्या आम हो गई है, लेकिन अमरीका के मामले में स्थिति को बेहद चिंताजनक कहा जा सकता है.

भविष्य में अगर चीन अपने पंख फड़फड़ाता है तो चीनी सेना नहीं, बल्कि चीनी बैंक ही अमरीका के लिए ख़तरा पैदा करने में ख़ासे सक्षम रहेंगें.

अमरीका को अपना वित्तीय भार संभालने के लिए जो कुछ करना है वो उतना मुश्किल नहीं है जितना कि यूरोप के लिए वो मुश्किल होगा. असल में ये एक वित्तीय समस्या न हो कर एक राजनीतिक समस्या है.

डेविड फ़्रम, पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के भाषण लेखक

अगर चीन के बैंकरों ने अमरीका को वित्तीय मदद देने से इनकार कर दिया तो अमरीकी लोगों की ज़िदगी रातों-रात बदल सकती है और विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का बंटा धार हो सकता है.

लेकिन इस दृष्टिकोण से हर कोई सहमत नहीं है. पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के भाषण लेखक रह चुके डेविड फ़्रम का कहना है कि असल में इस समस्या से निपटने का एक आसान रास्ता है.

उनका कहना है, “अमरीका को अपना वित्तीय भार संभालने के लिए जो कुछ करना है वो उतना मुश्किल नहीं है जितना कि यूरोप के लिए वो मुश्किल होगा. असल में ये एक वित्तीय समस्या न हो कर एक राजनीतिक समस्या है. ”

डेविड फ़्रम का मानना है कि भविष्य में खर्च कम करने से और टैक्स इकट्ठा करने से इस समस्या से निपटा जा सकता है. उनका कहना है कि अमरीका अपनी जीडीपी का एक बड़ा हिस्सा स्वास्थय क्षेत्र पर खर्च करता है, जिसे कम किया जा सकता है.

समस्या की जड़

मैं निसंदेह रूप से ये तो नहीं कह सकता कि अमरीका के ऋण समस्या से न जूझ पाने के पीछे क्या कारण है.

ये कहा जा सकता है कि ये समस्या पूर्ण रूप से आर्थिक नहीं, बल्कि राजनीतिक है. सांस्कृतिक रूप से भी अमरीकी लोगों में मुश्किल फ़ैसले लेने की क्षमता नहीं है.

इस आंकड़े को देख कर मैं काफ़ी चिंतित हूं. इसे नियंत्रण में लाना बेहद ज़रूरी है. हम जितना इंतज़ार करेंगें, उतना ही हम कमज़ोर होते चले जाएंगें.

अर्थशास्त्री जैफ़री सैश

अमरीका में एक बीबीसी संवादादाता होने के नाते मैंने देखा है कि अमरीका में बाहरी मीडिया की कवरेज काफ़ी नकारात्मक है.

अमरीका बेहद सक्षम और सफल देश है, लेकिन ये भी सच है कि कुछ मामलों में बेहद निहत्था है.

टी पार्टी मूवमेंट सरकारी ख़र्च में कटौती की बात करती है, लेकिन उसे लागू करने की जब बात आती है, तो अमरीकियों को लगता है कि कटौती का असर उन पर नहीं होना चाहिए.

सब चाहते हैं कि सरकारी ख़र्च कम हो, लेकिन साथ ही कोई भी ये नहीं कहता कि टैक्स बढ़ाया जाए. जैफ़री सैश कहते हैं कि इसके पीछे भी एक वजह है.

अमरीका की दो मुख्य राजनीतिक पार्टियां चुनाव के समय बहुत सा पैसा इकट्ठा करती है और ऐसा करने के लिए वे अमीर लोगों को बड़ी कंपनियों को खुश रखने की कोशिश करते हैं.

यही कारण है कि वो टैक्स के मुद्दे को छूना भी नहीं चाहते. सच कहूं तो मैं इस लेख का कोई निष्कर्ष नहीं जुटा पा रहा है. मुझे यकीन नहीं होता कि जो देश ऐतिहासिक तौर पर इतना शातिर रहा हो, वो विनाश के आगे इतनी आसानी से घुटने टेक रहा है.

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