मंगलवार, 21 मार्च 2023

जश्न ए नौरोज़ ए हिन्द होली है राग और रंग बोली खोली है

नौरोज़ नौरोज़ बुनियादी तौर पर ईरान के पुराने मज़हब पारसी (मजूसी /Zoroastrians) का त्यौहार है लेकिन अब इसे मुसलमान बड़े पैमाने पर मनाते हैं. फ़ारसी के सब से बड़े शाइर फिरदौसी के मुताबिक़ नौरोज़ की तारीख ये है कि एक बार ईरान का बादशाह जमशेद जब आज़रबाईजान से लौट कर आ रहा था तो एक मक़ाम पर वो रुका और लोगों ने उसके सर पर एक ताज रखा उस ताज पर जब सूरज की रौशनी पड़ी तो उसकी किरनों से दुनिया की सारी चीज़ें रौशन हो गईं. सब नया नया नज़र आने लगा. ईरानी तारीख के मुताबिक़ ये त्योहार तक़रीबन 3500 साल से मनाया जा रहा है. हख़ामनशी, सासानी बादशाहों के ज़माने में ये त्यौहार नैशनल फ़ेस्टिवल की सूरत इख़्तियार कर गया. नौरोज़ के मानी हैं नया दिन. इसी दिन से नया ईरानी साल शुरू होता है. खिलाफ़त ए उस्मानिया में भी ये त्यौहार बड़ी धूमधाम मनाया जाता था. सुल्तान अपने दरबारियों को फ्रूट्स और दूसरी चीज़ें देते थे. उस्मानी आर्मी में भी नौरोज़ बहुत अच्छे से मनाया जाता था. मुग़ल दौर में तो तो बाक़ायदा जश्न ए नौरोज़ होता जिसमें बादशाह खुद भी शरीक होते और मुग़ल औरतें, शहज़ादियां वग़ैरह खूब जश्न मनाते. रंग खेला जाता था. रंग की वजह से ही मीर तक़ी मीर ने होली को हिन्दुस्तान का नौरोज़ क़रार दिया. कहते हैं जश्न ए नौरोज़ ए हिन्द होली है राग और रंग बोली खोली है आज भी नौरोज़ बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. ईरान का सब से बड़ा फेस्टिवल नौरोज़ ही है जिस में हर ईरानी शरीक होता है और उनके घर पर कई क़िस्म के पकवान बनते हैं. ईरान के बाद ये त्यौहार बड़े पैमाने पर अफ़गानिस्तान में मनाया जाता है. वहाँ कई अलग अलग मेले लगते हैं. घर पर सात क़िस्म के मेवे मेहमानों को पेश किए जाते हैं. इनके अलावा आज़रबाईजान, इराक़, चीन, आर्मेनिया, तुर्की, कजाकिस्तान, ताजिकिस्तान, उजबेकिस्तान, में ख़ास तौर पर ये त्योहार मनाया जाता है. नौरोज़ मुबारक. -शाह फहद नसीम

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