सोमवार, 26 जुलाई 2010

प्रशासन के कड़े रुख के पश्चात भट्ठी से पका केला बाजार में उपलब्ध लखनऊ से केमिकल से पका केला आने से व्यवसायी परेशान

बाराबंकी।लगभग एक दशक उपरान्त बाजार में बगैर केमिकल के पका हुआ केला उपलब्ध है।इस केले में मिठास भी है,छिलके पर चित्तियां भी है और स्वास्थ्य के लिए यह हानिकारक भी नही है।बस कमी है तो इतनी कि रंगत के मामले में यह केमिकल के पके केले से पीछे है।
 शासन द्वारा केमिकल में डुबो कर पकाये जा रहे केले व कैल्शियम कार्बाइड से पकाये जा रहेे अन्य फलों के विरुद्ध चलाए जा रहे अभियान के कारण फल व्यवसाईयों को विगत कई सप्ताह से दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था। खाद्य एवं औषधि प्राधिकरण विभाग द्वारा नगर के केला गोदामों में भी छापा मारकर कार्यवायी की गयी।केमिकल युक्त केले का नमूना भरकर जाॅच के लिए उसे जन विश्लेषक प्रयोगशाला,अलीगंज लखनऊ भेजा गया।जिसकी रिपोर्ट आने के पश्चात केला व्यवसायी के ऊपर कार्यवायी सम्भव प्रशासन के इस रुख से परेशान केला गोदामों में सन्नाटा छा गया।लगभग दो हफ्ते तक केला व्यवसाईयांे ने कारोबार बंद रखा।नवीन मण्डी स्थल पर सपा के एक छुटभैया नेता के नातेदार ने केमिकल लगाकर केला पकाने की जुर्रत की,किसी ने प्रशासन के कान में शिकायत फॅूक दी,परिणाम स्वरुप लगभग दस कुन्टल केला खाद्य एवं औषधि प्राधिकरण विभाग के नोडल अधिकारी द्वारा नहर में फिकवा दिया गया और केले का नमूना सील बंद करके जाॅच के लिए लखनऊ रवाना कर दिया गया।
 प्रशासन के कड़े रुख से परेशान केला व्यवसाईयों ने उ0प्र0जमीयत उर राईन के प्रदेश अध्यक्ष मो0वसीम राईन के नेतृत्व में जिलाधिकारी से भेंट की और पूछा कि वह लोग केला व अन्य फल किस पद्धति से पकाये।औद्यानिक विभाग व कृषि विभाग के वैज्ञानिकों का इस मामले में क्या मत है,उससे उन्हे अवगत कराया जाए।अन्त में बातचीत का नतीजा यह निकला कि पुरानी पद्धति कोयले की भट्ठी द्वारा केला पकाने की इजाजत जिला प्रशासन ने केला व्यवसाईयों को दे दी,जिसके बाद अब एक दशक उपरान्त केला एक बार फिर कोयले की भटठी से पकाया जाना प्रारम्भ हो गया है।लगभग एक दर्जन भटिठयां नगर में वर्तमान समय में चालू हेा चुकी है और इनके द्वारा पका हुआ केला जनता के सेवन हेतु बाजार में उपलब्ध है।
 पुरानी सब्जी मण्डी में लगभग चार दशक से केले के कारोबार से जुड़े कल्लू केले वाले का कहना है कि वह पहले भट्ठी से ही केला पकाया करते थे।विगत सात आठ सालों से केमिकल से केला पकाने का कारोबार शुरु हुआ चूॅकि उनकी बिरादरी के अधिकांश लोग अशिक्षित है,उन्हे नही पता था कि जिस केमिकल से वह केला पका रहे थे वह मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए कितना हानिकारक था।पुरानी सब्जी मण्डी में भट्ठी से केला पका कर फुटकर विक्रेताओं के हवाले करते हुए मो0शुएब केा  इस बात की शंका सता रही थी कि अपनी रंगत के एतबार से कमजोर यह केला बाजार में उठेगा भी कि नहीं? उनका मानना था कि समाचार पत्रों में केले पर छपे समाचारों से आम जनमानस ने केले का सेवन काफी कम कर दिया है और भट्ठी से पका केला जल्दी खराब होता है।नुकसान की आशंका है। इसी प्रकार मो0कलीम,मो0इस्लाम व मो0वसीम का भी मानना था कि उन्होने जिला प्रशासन से अनुमति मिलने के पश्चात भट्ठी से केला पका कर बाजार में उतारा तो है,परन्तु व्यापारिक दृष्टि कोण से उन्हे कितनी सफलता मिलेगी यह एक सवालिया निशान केेले के व्यवसाय के साथ जुड़ा हुआ है।उधर अब्दुल रशीद का कहना था कि बाराबंकी में तो अब केमिकल से केला पकना बंद किया जा चुका है।परन्तु अभी भी प्रदेश की राजधानी लखनऊ में केमिकल से पका केला बिक रहा है और चोरी छुपे लोग लखनऊ से केला लाकर यहाॅ बेच रहेे हैं।प्रशासन को चाहिए कि उस केले की आमद पर  भी रोक लगाए वरना जब बाजार में एक ठेले पर पीला खुशरंग केला रखा होगा जो कि केमिकल से पका होता है तो हल्का पीला रंग का काली चित्ती वाला देखने में बदसूरत केला ग्राहक क्यों लेगा।इससे उनके व्यवसाय पर असर पड़ेगा।
 केला व्यवसाईयों की बात से यह स्पष्ट हो गया कि केमिकल से केला पकाने के पीछे उनका उद्देश्य केले की बिक्री को बढ़ाना था,उनके खर्चे में केाई फर्क केमिकल या कोयले से नही पड़ता।बर्फ दोनो ही सूरतों में उन्हे लगाना पड़ता है।जिसकी लागत एक रुपये प्रति दर्जन आती है।केला व्यवसाईयों ने बताया कि एक पिकप केले की लाट भट्ठी द्वारा पकाने में मात्र 30 या 40 रुपये का कोयला लगता है और लगभग इतने ही दामों में केमिकल भी मिलता था।केला सेवन करने वालों को इस बात का ध्यान रखना होगा कि जो केला देखने में सुन्दर है वह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है।जैसे हर चमकने वाली चीज़ सोना नही होती।

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