गुरुवार, 23 सितंबर 2010

अयोध्या विवाद का निर्णय टलने को राजनीतिक साजिश का एक हिस्सा बता रहे है लोग

बाराबंकी(तारिक खान)।देश की आजादी के बाद सबसे लम्बी मुद्दत तक चलने वाले सिविल मुकदमे का निर्णय आने के मात्र एक दिन पूर्व सर्वोच्च न्यायालय द्वारा एक सप्ताह की रोक उच्च न्यायालय इलाहाबाद की लखनऊ बंेच पर फैसला सुनाने के लिए लगाते हुए याची रमेश चन्द्र त्रिपाठी के प्रार्थना पत्र की सुनवायी 28 सितम्बर को करने का हुक्म सुना दिया है,अंतिम समय पर 60 साल बाद आने वाले निर्णय को स्थगित कर देने के इस फैसले ने एक बार फिर घोर असमंजसता का वातावरण उत्पन्न कर दिया है और लोगो का सामाजिक जीवन एकदम ठहर सा गया है।
 किसी को नया घर बनवाना था तो उसने अयोध्या विवाद के निर्णय के कारण उसे यह सोचकर रोक दिया कि आगे क्या हालात होते है,उसी के अनुसार वह काम कराएगा।किसी को सफर करना था तो उसने अपना ट्रेन का आरक्षण स्थगित करा दिया कि इस दहशत के माहौल कौन सफर करे?ईद का महीना चल रहा है,मुस्लिम सम्प्रदाय में बहुत से घरों मंे शादियां कई महीने पहले तय हो चुकी थी परन्तु लोगो ने शादियों की तारीख या तो आगे बढा दी या अभी यह निर्णय नही लिया कि शादी उस तारीख पर की जाए या नही।प्रारम्भ में 17 सितम्बर को उच्च न्यायालय इलाहाबाद की लखनऊ खण्ड पीठ का निर्णय आना था,परन्तु बाद में उसे 24 सितम्बर नियत कर दिया गया।लोगो ने अपने सामाजिक जीवन की रफ्तार को सितम्बर माह के दूसरे हफ्ते  के बाद से ही इस निर्णय की दहशत के कारण सुस्त कर दिया।दुकानदारों ने अपनी नयी खरीददारी 17 सितम्बर से पहले रोक दी,फिर जब निर्णय की तारीख आगे बढकर 24 सितम्बर हो गयी तो उन्होने थोड़ी राहत महसूस करके थोड़ा माल इस प्रकार डाला कि 24 सितम्बर तक चल जाए।17 सितम्बर को लखनऊ बेंच द्वारा रमेश चन्द्र त्रिपाठी के उस प्रार्थना पत्र को जब यह कहते हुए खारिज कर दिया,जिसमंे अयोध्या विवाद को आपसी बात चीत से हल करने की बात कही गयी थी और उच्च न्यायालय के निर्णय को टालने का अनुरोध किया गया था।लोगो में यह विश्वास पक्का हो गया था कि अब इस फैसले की आखिरी घड़ी आन पहुची है।
 उ0प्र0 समेत देश के सभी प्रान्तों में सुरक्षा प्रबन्ध सुदृढ़ कर दिए गए।धार्मिक विद्वानों द्वारा देश के नागरिकों से अमन चैन कायम रखने की अपीले जारी की गयी,लगभग सभी राजनीतिक दलों ने अदालत के निर्णय के सम्मान करने की बात कहते हुए भावनाओं में बहकर सम्भावित हिंसा करने वालो से अपीले की,खासतौर से उ0प्र0 सरकार ने अयोध्या विवाद के निर्णय के आने के बाद उससे उत्पन्न होने वाली परिस्थितियों से निपटने के लिए युद्ध स्तर पर सुरक्षा प्रबन्ध कर डाले,कई सौ करोड़ रुपये प्रदेश सरकार का खर्च हुआ पूरे प्रदेश का प्रशासनिक एकदम ठहर सा गया जिला मजिस्ट्रेट व उप जिला मजिस्ट्रेट की अदालते सूनी हो गयी।वादकारियों के मुकदमो की तारीखें 24 सितम्बर के बाद की लगा दी गयी। अस्थाई जेले बनायी गयी ,शांति भंग करने के अंदेशे के तहत लाखों लोगो को पाबन्द किया गया।80-90 साल के बुजुर्गो को भी पुलिस ने नही बख्शा। कितनों के शस्त्र जमा करा लिए गए इत्यादि इत्यादि निरोधक कार्यवाईयां की गयी।24 सितम्बर को निर्णय आने वाले दिन पुलिस भ्रमण के लिए दर्जनों गाड़ियां जनपद में सीज करके खड़ी कर दी गयी।नगर में कहाॅ कहाॅ उपद्रव हो सकता है,कौन करा सकता है यह सब चिन्हित कर लिया गया।नगर में कहाॅ कहाॅ छतों पर पुलिस बल तैनात किया जाएगा,इसकी भी निशानदेही कर ली गयी।उपद्रव की दहशत से घबराकर लोगो ने दस पन्द्रह दिन का जिन्स पानी अपने घर में भर लिया।दुकानदारों ने मौके का फायदा उठाते हुए बढे दामों पर सामान बेचे।
 परन्तु आज दोपहर टी0वी0 व रेडियो समाचार के माध्यम से जैसे ही लोगो को यह जानकारी हुई कि कल आने वाला अदालत का फैसला एक हफ्ते के लिए देश की सबसे बड़ी अदालत सर्वोच्च न्यायालय ने स्थगित कर दिया है और 28 सितम्बर को याची रमेश चन्द्र त्रिपाठी जो कि एक अवकाश प्राप्त सरकारी अधिकारी है,के प्रार्थना पत्र पर सुनवाई करने का निर्णय लिया है।अधिकांश लोगो को निराशा हुई,क्योंकि लोग अब इतने लम्बे मुकदमें से ऊब चुके है।सभी लोग अब यह चाहते है कि निर्णय भले ही किसी के पक्ष में हो अब इस बात का फैसला हो जाना चाहिए।लोग तो इस कारण काफी संतोष की स्थिति में थे कि 60 वर्ष से चले आ रहे इस टाइटिल सूट का फैसला कोई अंतिम फैसला नही होगा,इस कारण किसी प्रकार की तीव्र प्रतिक्रिया किसी भी पक्ष से नही आना चाहिए,क्योंकि हारने वाला पक्ष सर्वोच्च न्यायालय अवश्य जाएगा और यह वाद फिर लम्बे समय तक सर्वोच्च न्यायालय में लम्बित हो जाएगा।
 फैसले के टलने पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उ0प्र0 तंजीम-ए-मिल्लते इस्लामिया के अध्यक्ष शकील अंसारी ने कहा है कि यह सारा खेल उस कांगेस का है जिसने इस विवाद का बीज बोया था।वह नही चाहती कि इस मुकदमें का फैसला हो और उसके हाथ से राजनीति का लड्डू फिसल जाए।वहीं दूसरी ओर समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता तथा प्रसिद्ध सोशलिस्ट लीडर राम सेवक यादव के भतीजे विकास यादव ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का तो सम्मान करने की बात कही है परन्तु उनका मानना है कि याची रमेश चन्द्र त्रिपाठी के पीछे उन शक्तियों का हाथ है जो इस विवाद को कायम रखना चाहती है।उन्होने आपसी बातचीत से विवाद के हल निकलने की तो ताईद की परन्तु यदि समझौता न हो तो फिर न्यायालय के निर्णय को सर्वमान्य बताया।जनपद के वरिष्ठ अधिवक्ता चैधरी मेराजुद्दीन ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय  का स्वागत करते हुए कहा है कि यह मुकदमा केवल पक्षकारों का मुकदमा नही है यह दो धार्मिक सम्प्रदायों की धार्मिक भावनाओं से जुड़ा मुकदमा है।अतःन्यायालय से हटकर अगर इसका फैसला आपसी समझौता से हो जाए तो इससे अच्छी क्या बात है।मुकदमें के टालने पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उ0प्र0 जमीयत-उर-राईन के अध्यक्ष मो0वसीम राईन ने कहा है कि 60 साल के इस नासूर का मवाद अब निकल जाना चाहिए,ओहापोह की स्थिति अधिक खतरनाक होती है और कही तो नही कहा जा सकता परन्तु उ0प्र0 में इस समय ऐसा माहौल बन गया था कि यदि ऐसे समय पर इस संवेदनशील निर्णय आता तो अमन चैन बिगड़ने का अंदेशा बहुत कम था,क्योंकि पूरा प्रदेश इस समय पंचायती निर्वाचन के ज्वर से तप रहा था इस थके हुए मुद्दे की ओर लोग अपना ध्यान कम लगा रहे थे।शिया सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड उ0प्र0 के सदस्य व बहुजन समाज पार्टी के पूर्व जिलाध्यक्ष सै0इमरान रिजवी ने अयोध्या विवाद के फैसले के स्थगन पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती द्वारा किए गए पुख्ता सुरक्षा प्रबन्धों से हताश उपद्रवी शक्तियों ने जब यह जान लिया कि निर्णय आने के समय वह इस स्थिति में नही है कि उपद्रव करके अपनी राजनीतिक रोटिया सेंके जैसा वह पहले दो बार कर चुके है तो उन्होने फिलहाल मुकदमें के फैसले को आगे टलवा देने में ही अपनी भलाई समझी। लोक संघर्ष पत्रिका के सम्पादक रणधीर सिंह सुमन एडवोकेट निर्णय को टलवा देने की साजिश में कांग्रेस का मुख्य किरदार बता रहे है।उनके अनुसार कांग्रेस नही चाहती कि विवाद का निर्णय आए और भाजपा,सपा या बसपा किसी को भी इसका राजनीतिक लाभ मिले।यह सारी कवायद वोट की है।
 जहाॅ तक विधिक व्यवसाय से जुड़े लोगो का सम्बन्ध है तो वह इस प्रकार अंतिम समय में फैसले को रोक देने की कवायद को न्यायिक व्यवस्था के लिए उचित नही मानते बल्कि बाज लोगों का तो यह कहना था कि न्यायालय को एक खिलवाड़ बनाया जा रहा है न्यायिक प्रक्रिया में भावनाओं व रिश्तों का कोई स्थान नही होता,साक्ष्य व पैरवी के आधार पर अदालत को निर्णय देना होता है,शायद इसी कारण सर्वोच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त साॅलीसीटर जनरल सोली सोराब जी ने भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इस पूरी कवायद को एक दुर्भाग्य पूर्ण नजीर बताया है और इसकी पुनरावृत्ति न किए जाने की कामना की है।
 वैसे विधि शास्त्रियों को अभी भी आशा सर्वोच्च न्यायालय से इस बात की है कि आगामी 28 सितम्बर को यदि मुकदमें के पक्षकारों की ओर से कोई आवेदन समझौते के लिए अदालत के सम्मुख नही प्रस्तुत किया जाता है तो याची  रमेश चन्द्र त्रिपाठी का प्रार्थना पत्र एक बार पुनः उसी प्रकार खारिज कर दिया जाएगा जैसे 17 सितम्बर को उच्च न्यायालय इलाहाबाद की लखनऊ बंेच द्वारा किया गया था।यहाॅ एक बात उल्लेखनीय है कि रमेश चन्द्र त्रिपाठी की याचिका उच्च न्यायालय द्वारा खारिज करते समय अदालत ने उन पर 50 हजार रुपये का जुर्माना आयद किया था और उसी समय यह बात भी प्रकाश में अदालत के सामने लायी गयी थी कि वर्ष 2005 में किसी अन्य मुकदमे में किसी अदालत के सामने स्वयं रमेश चन्द्र त्रिपाठी द्वारा यह कहा गया था कि उनका मानसिक संतुलन ठीक नही है।अब प्रश्न यह है कि ऐसे व्यक्ति द्वारा ऐसे महत्व पूर्ण वाद में अंतिम समय में हस्तक्षेप को क्यों संज्ञान मे लिया जा रहा है?
 
 

कोई टिप्पणी नहीं: